जनरल बिपिन रावत भारत के पहले चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेन्स स्टाफ़ (सीडीएस) थे.उन्हें एक जनवरी 2020 को देश का सीडीएस बनाया गया था जिसकी ज़िम्मेदारी सेना के तीनों अंगों के बीच समन्वय बनाना.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2019 को लाल किले से दिए अपने भाषण में चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस (सीडीएस) का पद बनाने की घोषणा की थी.जनरल रावत इससे पहले भारतीय सेना के प्रमुख रह चुके थे. वे 31 दिसंबर 2016 से 1 जनवरी 2017 तक भारत के 26 वें सेना प्रमुख रहे.
जनरल रावत का जन्म उत्तराखंड के पौड़ी ज़िले में एक सैन्य परिवार में हुआ. उनके पिता सेना में लेफ़्टिनेंट जनरल थे.भारतीय सेना की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार जनरल रावत 1978 में सेना में शामिल हुए थे.
शिमला के सेंट एडवर्ड्स स्कूल से पढ़ाई के बाद उन्होंने खड़कवासला के नेशनल डिफ़ेंस एकेडमी में सैन्य प्रशिक्षण लिया था.देहरादून की इंडियन मिलिट्री एकेडमी से ट्रेनिंग के बाद वे 11वीं गोरखा राइफ़ल्स टुकड़ी की पाँचवीं बटालियन में सेकंड लेफ़्टिनेंट बनाए गए.
चार दशक से लंबे सैन्य जीवन में जनरल रावत को सेना में बहादुरी और योगदान के लिए परम विशिष्ट सेवा मेडल, उत्तम युद्ध सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल, युद्ध सेवा मेडल, सेना मेडल और विशिष्ट सेवा मेडल के अलावा और कई प्रशस्तियों से सम्मानित किया जा चुका है.बयानों को लेकर अक्सर चर्चा में रहे जनरल रावत
थल सेना प्रमुख रहते हुए जनरल बिपिन रावत के कई बयान ख़ासे चर्चा में रहे.जनरल रावत ने 2019 के दिसंबर में नागरिकता संशोधन क़ानून सीएए और नागरिकता रजिस्टर को लेकर एक बयान दिया था जिसका काफ़ी विरोध किया गया था.
सीएए और एनआरसी पर देश के कई हिस्सों में जारी विरोध के बीच तब जनरल रावत ने कहा था, “जैसा कि हम देख रहे हैं कि कई विश्वविद्यालय और कॉलेज के छात्र हज़ारों की संख्या में भीड़ का नेतृत्व कर रहे हैं जो हमारे शहरों में हिंसा और आगज़नी कर रहे हैं. ये नेतृत्व नहीं है. नेता वो होता है जो आपकी सही दिशा में ले जाता है और सही सलाह देता है.”
बयान का विरोध होने के बाद उन्हें कहना पड़ा कि “सेना राजनीति से दूर रहती है. सेना का काम है, जो सरकार है उनके आदेश के अनुसार काम करना.”
कश्मीर पर बयान
2019 के सितंबर में कश्मीर को लेकर उन्होंने कहा था कि कश्मीर में संचार व्यवस्था दुरुस्त है. सभी टेलीफ़ोन लाइनें काम कर रही हैं और लोगों को कोई परेशानी नहीं है.
उन्होंने कहा था, “जम्मू कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद से वहां इंटरनेट और मोबाइल सेवाओं पर पाबंदी लगा दी गई थी. यहां चरणबद्ध तरीके से इंटरनेट पर पाबंदी हटाई जा रही है. बीते कल ही वहां मोबाइल एसएमएस सेवाएं बहाल की गई हैं.”
2018 के जून में कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन की संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा था, “मुझे नहीं लगता कि हमें इस रिपोर्ट को गंभीरता से लेना चाहिए. इनमें से कई रिपोर्ट दुर्भावना से प्रेरित होती हैं. मानवाधिकारों को लेकर भारतीय सेना का रिकॉर्ड काफ़ी बेहतर है.”
2018 फ़रवरी में उन्होंने असम में अवैध प्रवासियों का मुद्दा उठाया और बदरूद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ़ के लिए कहा, “एआईयूडीएफ़ नाम से एक पार्टी है. आप देखें तो बीजेपी के मुक़ाबले इस पार्टी ने बड़ी तेज़ी से तरक्की की है. अगर हम जनसंघ की बात करें जब उसके मात्र दो सांसद थे और अब वो जहां है, असम में एआईयूडीएफ़ की तरक्क़ी इससे अधिक है.”उनके इस बयान की कई हलकों में आलोचना हुई.
इससे पहले जनरल बिपिन रावत ने सेनाधिकारी लितुल गोगोई का बचाव किया था जिन पर कश्मीर में तैनाती के दौरान एक व्यक्ति को जीप से बांधकर घुमाने का आरोप था. ये तस्वीरें सामने आने पर सोशल मीडिया में इसकी काफ़ी आलोचना हुई थी.
बीएसएफ़ के एक जवान तेज बहादुर यादव ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डालकर सैनिकों को ख़राब खाना दिए जाने की शिकायत की थी. इसके बाद जनरल रावत ने कहा था कि जवानों को सोशल मीडिया के इस्तेमाल से बचना चाहिए और सीधे मुझसे बात करनी चाहिए.
वायुसेना को लेकर दिया बयान
इस वर्ष जुलाई में जनरल रावत ने वायु सेना को लेकर एक बयान दिया था और उसकी भी काफ़ी चर्चा हुई थी.जनरल रावत ने तब एक सम्मेलन में वायु सेना को सशस्त्र बलों की ‘सहायक शाखा’ कहा और उसकी तुलना तोपखाने और इंजीनियरों से की. उन्होंने कहा था कि वायु सेना के हवाई रक्षा चार्टर के अनुसार संचालन के समय वह थल सेना के सहायक की भूमिका निभाती है.
उनके इस बयान पर तत्कालीन वायु सेना प्रमुख एयर चीफ़ मार्शल आरके एस भदौरिया ने प्रतिक्रिया दी थी और कहा था कि वायु सेना की भूमिका केवल सहायक की नहीं होती, और किसी भी एकीकृत युद्ध भूमिका में वायु शक्ति की “बहुत बड़ी भूमिका” होती है.