धर्मशाला
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डाक्टर मोहन भागवत ने धर्मगुरु दलाई लामा से भेंट की। दोनों शख्सियतों के बीच लंबी मंत्रणा चली। बताया जा रहा है दोनों के बीच बंद कमरे में 40 से 50 मिनट तक बातचीत हुई।सरसंघचालक ने मुलाकात के दौरान धर्मगुरु को सबसे पहले गणेश की मूर्ति भेंट की। इसके बाद दोनों के बीच काफी देर तक बातचीत चलती रही। बताया जा रहा है कोरोना महामारी सहित अन्य अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भी दोनों के बीच चर्चा हुई। इसके अलावा विश्व शांति व जनकल्याण को लेकर भी चर्चा हुई।
स्वतंत्र तिब्बत की स्थिति पर भी चर्चा
निर्वासित तिब्बती सरकार के अध्यक्ष पेंपा सेरिंग और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों सहित सांसद अध्यक्ष सोनम ने भी सरसंघचालक मोहन भागवत से मुलाकात की। सीटीए अध्यक्ष पेंपा सेरिंग ने कहा 15 दिसंबर से दलाई लामा ने जनता के साथ मिलना शुरू कर दिया है।इसी के चलते उनसे भेंट के लिए आरएसएस के सरसंघचालक प्रमुख मोहन भागवत यहां पहुंचे। दलाई लामा की ओर से यह स्वाभाविक है कि वह बड़ी संख्या में भारतीय आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रमुख नेताओं से मिलें, इसलिए यह हमारे लिए एक अवसर रहा।दोनों प्रमुखों के बीच हुई मुलाकात में मानवता के हित पर चर्चा हुई। निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रतिनिधियों ने चीन के कब्जे से पहले स्वतंत्र तिब्बत की स्थिति पर भी चर्चा की।
कांगड़ा दौरे से लौटे मोहन भागवत
दलाई लामा से मुलाकात के बाद मोहन भागवत 11 बजे हवाई मार्ग से दिल्ली लौट गए। कांगड़ा जिला के पांच दिवसीय दौरे से लौटने से पहले सोमवार सुबह उन्होंने धर्म गुरु से लंबी मुलाकात की। दलाई लामा से भेंट करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक कांगड़ा से कड़ी सुरक्षा में मैक्लोडगंज के लिए रवाना हुए।
पिछले कुछ दिनों से कांगड़ा दौरे पर थे मोहन भागवत
डाक्टर मोहन भागवत पिछले कुछ दिनों से हिमाचल प्रदेश जिला कांगड़ा के प्रवास पर थे। यहां पर उन्होंने जहां आरएसएस के स्वयंसेवकों प्रचारकों के साथ बैठकें की वहीं भूतपूर्व सैनिकों व प्रबुद्ध लोगों से भी रूबरू हुए।उन्होंने भारत की एकता व भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए सभी स्वयंसेवियों को अपने कार्य को पूरी ईमानदारी व लगन से करने का संदेश दिया है। उन्होंने स्वंयसेवियों को हर शहर व गली गांव तक शाखा खोलने के लिए कार्य करने को भी कहा है।
मोहन भागवत का संदेश
मोहन भागवत ने कांगड़ा दौरे के दाैरान कहा है कि आज सबसे पहली जरूरत रोज की शाखा है। उसी के भरोसे में हर परिस्थिति को पार कर ध्येय की प्राप्ति करेंगे। हम तो मातृभूमि की सेवा में तिल-तिल जलना चाहते हैं। मोह, आकर्षणों को पास लाने वाली आदतों से दूर रहना है।इसलिए हमें अपनी साधना निरंतर जारी रखनी है। 2025 को संघ के सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं ऐसे में हमें संघ को 130 करोड़ लोगों तक पहुंचाना है, जिसके लिए प्रचार की अति आवश्यक है। संघ स्वयंसेवकों के जीवन से बढ़ता है। संघ अनुशासन व संस्कार देता है।