अफगानिस्तान की सत्ता पर दुनिया के खूंखार आतंकी और प्रतिबंधित लोगों का कब्जा हो गया है जिसके बाद से पूरी दुनिया की नजरें इस नई सरकार पर लगी हुई है
खूंखार आतंकियों के हाथ में अफगानिस्तान चले जाने से दुनिया भर में ड्रग्स और हथियारों की तस्करी और दहशतगर्दी बढ़ जाने की आशंका भी बढ़ गयी है। अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के जानकारों का कहना है कि अफगानिस्तान में थोपी गई अतंरिम सरकार में ऐसे आतंकवादी (मंत्री) शामिल हैं जिनके निशाने पर रूस, इंडिया, अमेरिका और फ्रांस जैसे देश हैं। इसीलिए अफगानिस्तान की अंतरिम सरकार के ऐलान के साथ ही दुनिया भर के देशों ने अपनी-अपनी खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों को रेड अलर्ट पर रख दिया है।
पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की सरपरस्ती में बनी अफगानिस्तान सरकार में लगभग सभी घोषित आतंकी है। इनमें से कुछ तो ऐसे हैं जिनके सिर पर करोड़ो डॉलर का ईनाम घोषित है।
इतना ही नहीं, अमेरिका, रूस जैसे सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों को तालिबान संगठन के लिए नई रियायतों की जगह बनाने से पहले अपने यहां आतंकी संगठनों की सूची से इसका नाम हटाना पड़ेगा. गौरतलब है कि अफगानिस्तान की नई तालिबान सरकार में प्रधानमंत्री मुल्ला हसन अखुंद, गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी, विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी जैसे तालिबानी नेताओं के नाम प्रतिबंध सूची में हैं. वहीं उप प्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुल गनी बिरादर और उप विदेश मंत्री शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकज़ई जैसे नेताओं को दी गई रियायत कई मियाद भी 22 सितंबर को खत्म हो रही है.
संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधि रहे सैय्यद अकबरुद्दीन कहते हैं कि यह अपने आप में पहली ऐसी स्थिति है जब सुरक्षा परिषद को प्रतिबंधित सूची वाले व्यक्तियों और संगठन के एक देश की सरकार बन जाने के बारे हमें फैसला करना होगा. यह देखना होगा कि इस बारे में परिषद के सदस्य देश क्या रुख अपनाते हैं. अफगानिस्तान को मदद और उसके साथ सम्पर्क रखना है तो कोई रास्ता निकालना होगा.
गौरतलब है कि अगस्त 2021 में भारतीय अध्यक्षता में सँयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव 2593 पारित कर आतंकवाद के मुद्दे पर स्थिति को स्पष्ट कर दिया था. अगस्त 30 कई बैठक में पारित इस प्रस्ताव पर हुए मतदान में चीन और रूस ने भाग नहीं लिया था. इसके अलावा एक बड़ा सवाल अफगानिस्तान में यूएन के प्रतिनिधत्व का भी है. अफगानिस्तान के नए नेतृत्व को मान्यता दिए जाने और उसकी तरफ से नियुक्त प्रतिनिधियों के बारे में भी यूएन की एक्रीडिटेशन कमेटी को फैसला करना होगा. वहीं यदि अपने को राष्ट्रपति घोषित करने वाले अरुल्लाह सालेह तालिबानी सरकार के समानांतर प्रतिद्वंद्वी दावा करते हैं तो मामला यूएन महासभा के फैसले ले लिए जाएगा. ऐसे में अफगानिस्तान की नुमाइंदगी का मामला उलझ सकता है.