लंदन
ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की कोरोना वैक्सीन (Oxford-Astra Zeneca COVID-19 vaccine) का असर तीन महीने बाद कम होने लगती है. यह दावा प्रतिष्ठित लैंसेट जर्नल (The Lancet journal)में प्रकाशित हुए एक स्टडी में किया गया है. भारत में ये टीका कोविशील्ड ( Covishield) के नाम से उपलब्ध है. ब्राजील और स्कॉटलैंड के डाटा से निकाले गए निष्कर्षों में कहा गया है कि जिन लोगों ने यह टीका लगवाया है, उन्हें गंभीर बीमारी से सुरक्षित करने के लिए बूस्टर डोज (Booster Dose) की जरूरत है.
रिसर्चर्स ने इस स्टडी में एस्ट्राजेनेका टीका लगवाने वाले 20 लाख और ब्राजील के 4.2 करोड़ लोगों के डाटा का विश्लेषण किया. रिसर्चर्स ने कहा कि टीके के असर में कमी लगभग तीन महीने के बाद आनी शुरू हो जाती है. इस दौरान अस्पताल में भर्ती होने और मौत होने की आशंका दूसरी खुराक लेने के दो सप्ताह बाद के मुकाबले दोगुना तक होता है. इसके साथ ही, दूसरी खुराक लेने के चार महीने बाद यह आशंका तीन गुनी तक हो जाती है.
टीकों का कम होता असर चिंता का विषय
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग के प्रोफेसर अजीज शेख ने कहा कि वैश्विक महामारी के खिलाफ लड़ाई में टीके प्रमुख हथियार रहे हैं, लेकिन समय के साथ उनके प्रभाव में कमी आना चिंता का विषय है. इस स्टडी में उन लोगों के परिणामों की तुलना करके समान पखवाड़े के अंतराल पर टीके की प्रभावशीलता का अनुमान लगाया है, जिन्हें टीका नहीं लगाया गया है. इस अध्ययन ने कोरोना के ओमिक्रॉन वेरिएंट को लेकर भी आशंकाओं को बढ़ा दिया है.
प्रोफेसर शेख ने आगे कहा कि एस्ट्राजेनेका के कोविड रोधी टीके के असर में कमी की शुरुआत कब होती है, सरकारों को यह निर्धारित करने में मदद मिल सकेगी कि लोगों को टीके की बूस्टर खुराक देने के कार्यक्रमों को कब और किस तरह शुरू किया जाए. इस स्टडी में ब्राजील और स्कॉटलैंड दोनों ही स्थानों पर डाटा के विश्लेषण में इस टीके के प्रभाव में कमी होने की शुरुआत लगभग 12 सप्ताह यानी तीन महीने सामने आई है.
बता दें कि भारत में बड़े पैमाने पर ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन का निर्माण सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की ओर से किया जा रहा है. भारत के लिहाज से इस वैक्सीन की सबसे अच्छी बात ये है कि इसका स्टोर करना दूसरी वैक्सीन के मुकाबले बहुत ही आसान है. साथ ही ये वैक्सीन सस्ती है.