शेखर की रिपोर्ट
बोकारो : सदियों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन आज भी बोकारो जिले में देखने को मिलती है। शारदीय नवरात्र की बात करें तो अधिकांश घरों में आयोजित होने वाला एक ऐसा अनुष्ठान, जहां पूजा-उपासना के साथ-साथ देवी को प्रसन्न करने की परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है, वह है बलि की परंपरा। नवरात्र का अभिप्राय यहां प्रत्यक्ष तौर पर नवमी के दिन से जुड़ा है। शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माता दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। इस दिन यहां बड़े पैमाने पर बकरों की बलि दी जाती है।
ग्रामीणों के अनुसार आसुरी शक्ति को पराजित करने का यह प्रतीक दिवस माना जाता है। ग्रामीणों के अनुसार यहां दो तरह की बलि की परंपरा है। एक वार्षिक, जो सदियों से चली आ रही है, वहीं दूसरा मनोकामना पूरा होने पर। इसमें लोग मन्नत पूरी होने पर बलि देते हैं। ग्रामीण अपने घरों में या मंदिर में जाकर बलि की परंपरा का निर्वहन करते हैं। देवी को प्रसन्न करने के लिए दी जाती है बलि :
मां दुर्गा को खुश करने के लिए बकरे की बलि दी जाती है। नवरात्र में इस इलाके में नवमी के दिन को बलिदान के रूप में जाना जाता है। जिन घरों में नवरात्र का कलश स्थापन किया जाता है, उन घरों में सिद्धिदात्री को प्रसन्न करने के लिए बकरों की बलि दिए जाने की परंपरा है। इधर, रविवार को बलि को लेकर बकरे की खरीदारी के लिए बोकारो के बकरी बाजार सहित ग्रामीण क्षेत्रों के हाट में ग्रामीणों की भारी भीड़ उमड़ी। यहां लगभग पांच हजार से अधिक बकरों की बिक्री हुई। बाजार में कम से कम 3500 से 18,000 रुपये में बकरे की बिक्री हुई