एहसान अली की रिपोर्ट
जम्मू। राज्य के इतिहास के सबसे बड़े घोटाले रोशनी एक्ट में आने वाले दिनों में कई राज खुलने वाले हैं। हाईकोर्ट के लगातार दबाव के चलते राजस्व विभाग ने गत दिवस रोशनी एक्ट के लाभार्थियों की सूची डिवीजन बेंच के सामने पेश कर दी है। इसमें जम्मू संभाग के 25 हजार व कश्मीर के 45 हजार लोग शामिल हैं, जिन्होंने पहले सरकारी जमीनों पर कब्जा किया और बाद में चंद सिक्के देकर उसके मालिक बन गए। रोशनी एक्ट की आड़ में करोड़ों-अरबों रुपये की सरकारी संपत्ति के मालिक बन बैठे इन लोगों में कई पूर्व मंत्री व नौकरशाह शामिल हैं जिनके नामों से आने वाले दिनों में पर्दा उठ सकता है।
जम्मू-कश्मीर देश का शायद एकमात्र ऐसा प्रदेश होगा, जहां सरकारी जमीनों पर धड़ल्ले से कब्जा हुआ। राजनेताओं व नौकरशाहों के प्रभाव में जमकर अतिक्रमण हुआ। इससे भी चिंतनीय यह रहा कि सरकारी जमीनों पर हुए कब्जों को हटाने की बजाय सरकार की तरफ से ऐसे कानून बनाए गए जिससे कब्जा करने वालों को ही जमीन का मालिक बना दिया गया। बीस साल पहले हुए एक सरकारी सर्वे के मुताबिक जम्मू-कश्मीर की 20,64,792 कनाल जमीन पर लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा था। तत्कालीन सरकार ने इस कब्जे को हटाने की बजाय लोगों को इन जमीनों का मालिकाना अधिकार देने के लिए रोशनी एक्ट बनाया। अब केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में यह उम्मीद जगी है कि न्यायपालिका के दबाव में ही, सरकारी जमीनों पर हुए इन अवैध कब्जों को हटाया जाएगा और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होगी।
वर्ष 2001 में तत्कालीन नेशनल कांफ्रेंस सरकार ने रोशनी एक्ट बनाया था और इससे इकट्ठा होने वाली धनराशि को बिजली क्षेत्र के प्रोजेक्ट में लगाने की बात कही। एक्ट में प्रावधान था कि केवल उन्हीं लोगों को जमीनों का मालिकाना अधिकार दिया जाएगा, जिनके पास 1999 के पहले से सरकारी जमीन पर कब्जा है लेकिन राजनेताओं की नीयत बदलते वक्त नहीं लगा। वर्ष 2004 में रोशनी एक्ट में संशोधन किया गया। संशोधन करते हुए वर्ष 1999 के महत्व को समाप्त कर दिया गया। नया प्रावधान शामिल किया गया और व्यवस्था बनी कि जिसके भी कब्जे में सरकारी जमीन है, वह योजना के तहत आवेदन कर सकता है। इससे जमीन का अतिक्रमण और भी ज्यादा हुआ। रोशनी एक्ट के तहत कमेटियां बनाई गईं, जिन्हें भूमि का मार्केट रेट निर्धारित करना था, लेकिन नियमों को ताक रख दिया गया। संशोधित योजना के नियमों के तहत 31 मार्च 2007 के बाद सरकारी भूमि के मालिकाना अधिकारों के लिए आवेदन नहीं किया जा सकता था। ऐसे में यह योजना हालांकि 2007 में आप्रासंगिक हो जाती लेकिन इसमें संशोधन जारी रहे और राजनेता व नौकरशाह इसका फायदा उठाकर सरकारी जमीनों के मालिक बनते गए।
एक्ट के तहत हुआ 25 हजार करोड़ का घोटाला
सरकार की तरफ से गरीबों और कब्जा धारकों को जमीनों का मालिकाना हक देने के लिए शुरू की गई रोशनी योजना में 25 हजार करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप किसी और ने नहीं, बल्कि तत्कालीन प्रिंसिपल एकाउंटेंट जनरल ने लगाए थे। वर्ष 2013 में तत्कालीन प्रिंसिपल एकाउंटेंट जनरल जम्मू-कश्मीर एससी पांडे ने कहा था कि सरकार और राजस्व विभाग ने सभी नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाकर जमीन बांटी और जम्मू-कश्मीर के इतिहास में अब तक के सबसे बड़े घोटाले की इमारत तैयार कर दी। इतना ही नहीं, कृषि भूमि को मुफ्त में ही ट्रांसफर कर दिया गया। इसके लिए 2013 में पांडे ने एक पत्रकार सम्मेलन में सार्वजनिक रूप से कंप्ट्रोलर एंड आडिटर जनरल ऑफ इंडिया (सीएजी) की वर्ष 2012-13 की रिपोर्ट में रोशनी एक्ट से जुड़ी योजना के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया था। यह कहा गया था कि अनुमान था कि राज्य की 20,64,792 कनाल भूमि पर हुए अवैध कब्जे का लोगों को मालिकाना हक देकर 25,448 करोड़ रुपये जुटाए जाएंगे, लेकिन कानून पर अमल नहीं किया गया। लोगों को 3,48,160 कनाल भूमि का हक देते हुए 317.54 करोड़ रुपये की जगह के लिए मात्र 76.24 करोड़ रुपये ही वसूले गए। रोशनी एक्ट को नजरअंदाज करते हुए अलग से नियम तैयार कर 3,40,091 कनाल कृषि भूमि को निशुल्क ही ट्रांसफर कर दिया गया। प्रिंसिपल एकाउंटेंट जनरल ने कहा था कि उनके कार्यालय ने बार-बार राजस्व विभाग से रोशनी योजना के तहत लाभांवितों की सूची व जानकारी देने के लिए कहा, लेकिन महीनों लटकाकर रखा गया और जानकारी नहीं दी गई। आखिरकार सीएजी ने 31 जुलाई 2013 को रिपोर्ट तैयार कर ली। उनके पास सिर्फ 547 मामलों की जानकारी आई। इसमें 666 कनाल भूमि को ट्रांसफर करते हुए रियायतें दे दी गई, जिसमें सरकार को 225.26 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। सरकार की तरफ से खुद ही फ्रैंडली नियम तैयार कर लिए गए। जमीन के मालिकाना अधिकार देने की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं रही। पुलवामा में सड़क किनारे 129 कनाल भूमि 59 लोगों को ट्रांसफर कर दी गई और इसमें रोशनी एक्ट का पूरी तरह से उल्लंघन हुआ।
हाईकोर्ट में विचाराधीन है मामला
रोशनी एक्ट की आड़ में सरकारी जमीनों पर कब्जा करने वालों को मालिक बनाने को एडवोकेट अंकुर शर्मा ने जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। वर्ष 2016 में उन्होंने यह केस दायर किया और लंबी सुनवाई के बाद 13 नवंबर 2018 को हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच ने रोशनी एक्ट के तहत हर तरह के लेनदेन पर रोक लगा दी। इससे चंद दिन बाद, 28 नवंबर 2018 को तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक की अध्यक्षता में प्रदेश प्रशासनिक परिषद ने भी रोशनी एक्ट के तहत हर तरह के लेनदेन पर रोक लगा दी। उसके बाद से रोशनी एक्ट के तहत हालांकि कोई लेनदेन नहीं हुआ है लेकिन अब एडवोकेट अंकुर शर्मा रोशनी एक्ट के तहत दी गई जमीन को वापस लाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।