नवजात बच्चों, डायबिटीज के रोगियों और चोट लगने से रेटिना हटने की सर्जरी अब कानपुर हैलट में ही हो जाएगी। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग में सर्जिकल रेटिना यूनिट का रास्ता साफ हो गया है। करीब नौ करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट को शासन से सहमति मिल गई है। दो-तीन महीने में यूनिट शुरू होने की उम्मीद है।
इसके बाद रोगियों को लखनऊ और एम्स दिल्ली नहीं जाना पड़ेगा। डायबिटीज रोगी डायबिटिक रेटिनोपैथी की गिरफ्त में आ रहे हैं। रेटिना खराब होने से रोशनी चली जाती है। अब डायबिटिक रेटिनोपैथी के रोगियों को बेहतर इलाज मिलेगा। हैलट में सप्ताह भर में इसके 50 रोगी आते हैं। इनमें कई को बाहर रेफर करना पड़ता है।
इसी तरह प्रिटर्म डिलीवरी (समय से पहले पैदा होने वाले) वाले नवजात रोगियों की आंखों में रेटिनोपैथी हो जाती है। ऐसे बच्चों के फेफड़े ढंग से विकसित न हो पाने के कारण उन्हें ऑक्सीजन लगानी पड़ती है। इसकी वजह से उनकी रेटिना उखड़ने लगती है। ऐसे नवजात का महीने भर के अंदर इलाज हो जाए तो वे अंधता से बच जाते हैं।
नेत्र रोग विभागाध्यक्ष डॉ. परवेज खान ने बताया कि हर सप्ताह 10-15 बच्चों की स्क्रीनिंग की जाती है। इनमें दो-तीन नवजात को इलाज की जरूरत होती है। इसके अलावा रेटिना डिटेचमेंट के रोगी आते हैं। चोट लगने से रैटिना को नुकसान पहुंचता है। अब हैलट में उनकी भी सर्जरी हो सकेगी।
राजकीय मेडिकल कालेजों में सिर्फ दो ही रेटिना सर्जन हैं। जीएसवीएम मेडिकल कालेज में डॉ. परवेज खान और एक रेटिना सर्जन ने हाल में ही प्रयागराज के राजकीय मेडिकल कॉलेज में ज्वाइन किया है। कालेज के प्राचार्य डॉ. संजय काला ने बताया कि इससे नेत्र रोगियों को फायदा होगा। उन्हें उच्चस्तरीय इलाज हैलट में ही मिल जाएगा।