हरिकेश यादव की रिपोर्ट
सुल्तानपुर सभी पत्रकार भाइयों को समर्पित एक बार जरूर पढ़ें ताकि शायद किसी को कोई समझ में आ जाए पत्रकार किसे कहते हैं सबसे पहले हम अगर सुन ले कि कोई जनप्रतिनिधि आ रहा है अपना पेट्रोल लगा कर के उस स्थान तक पहुंचते हैं जहां पर वह जनप्रतिनिधि पहुंचता है पत्रकार वहां पहुंचते हैं और वहां की व्यवस्था सिर्फ 5 या 10 कुर्सियों की होती है 5 से 10 पत्रकार कुर्सी पर बैठ जाते हैं बाकी जो पोर्टल वाले हैं वह खड़े होकर और नेताजी के सामने फोटो और वीडियो बनाने लगते हैं फिर उसके बाद पत्रकार वहां के कार्यक्रम की डिटेल के पीछे पड़ जाते हैं कि शायद हमसे कोई नाम छूट न जाए पूरी जानकारी करके उस डिटेल को खबर में परिवर्तित करते हैं फिर उसके बाद एक एक शब्द को सही से सेट करके अपनी संस्थान को भेजते हैं वह संस्थान अपने प्रिंटिंग प्रेस में उस पेपर को पीडीएफ के रूप में देता है वह पीडीएफ फिर उसी प्रकार के पास आ जाता है फिर पत्रकार कार्यक्रम वाली कटिंग काटकर व्हाट्सएप में शेयर करता है व्हाट्सएप भी बहुत नालायक हो गया है सिर्फ 5 लोगों तक एक बार में पहुंचता है यानी कि पत्रकार के फोन में कम से कम ढाई सौ व्हाट्सएप ग्रुप होते हैं उन ढाई सौ ग्रुपों में शेयर करने के लिए कम से कम एक घंटा वह खबर को शेयर करता है फिर जिस जनप्रतिनिधि की खबर है उसके में व्हाट्सएप पर करता है फिर उसके बाद वह फोन करता है उस जनप्रतिनिधि को कि आप की खबर मैंने लगा दी है वह जनप्रतिनिधि खबर को देखता है कभी नहीं देखता बहुत कम जनप्रतिनिधि जो उस खबर को पूरी तरह पढ़ते हैं यह काम वह पूरे 6 महीने करता फिर उसके बाद स्वतंत्रता दिवस आने पर वह अपने विज्ञापन की मांग करता है उस जनप्रतिनिधि से जनप्रतिनिधि एक जवाब होता है यार पत्रकार तो बहुत है किस किसको दे विज्ञापन उसे उसी में कुछ नामित अखबार उसी कार्यक्रम को किस प्रकार करते हैं फोन कर दिया यार फोटो हो तो डाल देना जैसे ही फोटो को पा गए वहां के जो प्रतिनिधि थे उनको फोन किया कार्यक्रम की जानकारी ली उसको चार लाइनों में खबर के रूप में तब्दील कर दिया सुबह पेपर में आ गया अब पेपर सुबह आता है वह किसी को कहते नहीं और उनका विज्ञापन 20,000 होता है आप बताएं किसने मेहनत ज्यादा की किसने आप को आगे बढ़ाया एक बार विचार करें मेरा मकसद किसी भी पत्रकार को दिल में ठेस पहुंचाना नहीं था सिर्फ अपनी बात कहनी थी