प्रयागराज: पिछले कुछ समय से महंगाई अपने चरम पर है जिसने लोगों के जीवन को बहुत दुर्लभ बना दिया है । आम जनजीवन इस महंगाई में सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है । बढ़ती महंगाई ने जिस तरह से आम जनता के जीवन को अस्त-व्यस्त किया है उससे तो लोगों का जीना दूभर हो गया है। चीजों की बढ़ती कीमतों ने रोजमर्रा की जिंदगी को कठिन बना दिया है ।
पेट्रोल डीजल के दाम में दिन-ब-दिन होती बढ़ोतरी समेत अनेक वजह से महंगाई लगातार बढ़ रही है। खाद्य तेल दाल की कीमत में तो इस दौरान 50 से 100% तक की बढ़ोतरी हो गई है। रसोई गैस पर खर्च भी 26% बढ़ गया है।केंद्रीय और राज्य कर्मचारियों के लिए महंगाई भत्ता की घोषणा की गई है लेकिन वह की कीमतों के आगे ना काफी है। स्थिति यह है कि पिछले डेढ़ साल में महंगाई भत्ते में 11 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है लेकिन कर्मचारी इससे खुश नहीं है। उनका कहना है कि सामान्य परिवार में भी घर का बजट आवश्यक वस्तु तक सिमट कर रह गया है।
उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी महांसंघ के मंडल अध्यक्ष अश्वनी कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि महंगाई चरम पर है। ऐसे में डीए में 11 प्रतिशत बढ़ोतरी कर्मचारियों के साथ बेमानी है। कम से कम 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी होनी चाहिए थी। उत्तर प्रदेश संयुक्त कर्मचारी परिषद के राजेंद्र त्रिपाठी का कहना है कि महंगाई भत्ता निर्धारण का फार्मूला ही गलत है। इसमें थोक मूल्य सूचकांक को शामिल किया जाता है। जबकि, फूटकर में महंगाई ज्यादा बढ़ी है। कर्मचारियों की मांग है कि फूटकर मूल्य के आधार पर डीए का निर्धारण किया जाए।
डीए का निर्धारण वर्ष में दो बार जनवरी तथा जुलाई में होता है। इस तरह पिछले छह महीने में महंगाई में हुई बढ़ोतरी के आधार पर डीए का निर्धारण होता है। यानि, जनवरी से जून के बीच बढ़ी महंगाई के आधार पर डीए में हुई बढ़ोतरी का लाभ जुलाई के वेतन से मिलेगा।
वेतन और पेंशन निर्धारण के जानकार एजी ऑफिस से रिटायर हरिशंकर तिवारी के अनुसार उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का निर्धारण 38 जिलों के 88 बाजारों के आधार पर होता है। इसमें पूरे देश के जिले और बाजार शामिल हैं। इसके अलावा ऊर्जा, खाद्य वस्तुएं, सेवा समेत अन्य क्षेत्रों के मूल्य में बढ़ोतरी का औसत लिया जाता है। इस लिहाज से 1960 में मूल्य सूचकांक निर्धारण में खाद्य वस्तुओं की हिस्सेदारी 60 फीसदी हुआ करती थी लेकिन सेवा शुल्क, ऊर्जा आदि क्षेत्रों में विस्तार हुआ है। इससे खाद्य वस्तुओं का प्रतिशत अब सिर्फ 58 प्रतिशत रह गया है। उनका कहना है कि सेवा क्षेत्र में ही मोबाइल टैरिफ में बढ़ोतरी नहीं हुई है।
ऊर्जा सेक्टर में बिजली समेत कई अन्य मद में खर्च कई वर्षों तक स्थिर रहता है लेकिन मूल्य सूचकांक का निर्धारण सभी के औसत पर तय होता है। इसलिए खाद्य वस्तुओं, पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस की कीमत में अधिक बढ़ोतरी के बावजूद डीए में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं हो पाती। इसके अलावा डीए का लाभ भी महंगाई बढने के छह महीने बाद मिलता है। वहीं एलआईसी के कर्मचारी अविनाश मिश्रा का कहना है कि मूल्य सूचकांक निर्धारण के लिए जिलों का चयन भी गलत तरीके से हुआ है। आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा को हटाकर कम महंगाई वाले जिले को शामिल कर लिया गया है। इससे भी मूल्य सूचकांक का वास्तविक निर्धारण नहीं हो पाता।