अयोध्या। इतने वर्षों तक विवादों से घिरी रहने के बाद राम नगरी में आखिरकार नौ नवंबर 2019 को रामलला के हक में फैसला आ गया लेकिन फिर भी सभी राजनीतिक पार्टियां राम नगरी को ही अपनी राजनीति का केंद्र बनाए हुए हैं। कभी भाजपा तो कभी सपा तो कभी बसपा और कांग्रेस सभी राजनीतिक पार्टियां राम नगरी को लेकर अपनी झोली में वोट डालने की कोशिश में लगी हुई हैं।
मार्च 2017 में शपथ ग्रहण करने के बाद से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ साढ़े चार वर्ष की अवधि में 27 बार अयोध्या आ चुके हैं। गत वर्ष 25 मार्च को यदि मुख्यमंत्री ने रामलला के विग्रह को अपने हाथों से उठा कर वैकल्पिक गर्भगृह में स्थापित किया, तो गत वर्ष ही पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया। भव्य मंदिर के साथ दिव्य अयोध्या विकसित करने के कई प्रकल्प संयोजित कर केंद्र एवं प्रदेश की भाजपा सरकार श्रीराम और रामनगरी से सरोकार अर्पित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।
भाजपा की बढ़त रोकने के लिए बसपा भी कमर कसकर अयोध्या की ओर दौड़ लगा चुकी है। 23 जुलाई को शीर्ष बसपा नेता एवं राज्यसभा सदस्य सतीश मिश्र ने रामनगरी के मुहाने पर न केवल ब्राह्मण सम्मेलन के माध्यम से रामलला के प्रति सरोकार ज्ञापित किया, बल्कि रामलला के सम्मुख श्रद्धावनत होकर उन्होंने स्वयं को भाजपा नेतृत्व से बड़ा रामभक्त बताने का प्रयास किया।
मिश्र के निकट सहयोगी एवं जिला पंचायत के पूर्व सदस्य करुणाकर पांडेय के अनुसार सच्ची रामभक्ति और राष्ट्रीयता संपूर्ण समाज को एकसूत्र में पिरो कर रखना है और यह काम बसपा से बेहतर कोई और नहीं कर सकता। कुछ ऐसा ही दावा गत माह के अंत में रामनगरी पहुंचे वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं कांग्रेस घोषणापत्र कमेटी के चेयरमैन सलमान खुर्शीद ने किया। उन्होंने श्रीराम के मानवीय आदर्श और अयोध्या की साझी विरासत के प्रतिनिधित्व का दावा किया। अगस्त माह की 23 तारीख को ही सपा सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष धर्मेंद्र सोलंकी ने सरयू के साथ कुछ प्रमुख मंदिरों का पूजन किया तथा करतलिया भजनाश्रम के महंत रामदास त्यागी से आशीर्वाद लिया। महंत रामदास का कहना है कि सपा नेतृत्व किसी अन्य दल के नेतृत्व से कुछ अधिक ही धार्मिक है। वहीं, आम आदमी पार्टी भी रामनगरी में तिरंगा यात्रा करने की तैयारी में है।