देवेश कटियार की रिपोर्ट
कन्नौज-दुनिया की परफ्यूम कैपिटल का दर्जा फ्रांस के ग्रास शहर को हासिल है, लेकिन भारत में किस शहर को इत्र नगरी कहा जाता हे? जवाब है, कभी भारत की राजधानी रहा कन्नौज। एक छोटा सा शहर, जहां की गलियां इत्र से महकती हैं। सुगंध के इतिहास, कन्नौज में इसके विकास और वर्तमान के बारे में बता रहे हैं
इस दुनिया में सबसे पहले सुगंध या इत्र किसने बनाया, इसका जवाब देना तो मुश्किल है। लेकिन एक बात साफ है कि सुगंध बनाने और इसके इस्तेमाल का इतिहास सभ्यता के विकास के साथ जुड़ा हुआ है। सबसे पुराने वेद ऋग्वेद के दूसरे अष्टक में बताया गया है कि अश्वमेध यज्ञ में सुगंध वाले पदार्थों के साथ आहुति दी जाती थी। यजुर्वेद के ‘महामृत्युंजय मंत्र’ में ‘सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्’ भी कहा गया है। वैदिक युग में गंध प्रसाधन बनाया और इस्तेमाल किया जाता था। वैदिक साहित्य में कहा गया है कि सुगंध उर्ध्वगामी चेतना का प्रतीक है। भारतीय दर्शन में पांच ज्ञानेंद्रियों में गंध को महसूस करने वाली नाक का भी जिक्र है। धरती को ‘सुगंधा’ कहा गया है। हर पूजा में देवी-देवताओं की प्रसन्नता के लिए सुगंध या इत्र का प्रयोग अनिवार्य है।
आयुर्वेद के ग्रंथों में फूलों और वनस्पतियों से ‘आसव’ निकालने की विधियां लिखी हुई हैं। आसव की ये विधियां ही आगे चलकर इत्र बनाने में काम आईं। यहां से थोड़ा आगे बढ़ते हैं तो हड़प्पा और मोहन जोदड़ों के अवशेषों में वैसे ही कई बर्तन मिले हैं, जिनसे आज कन्नौज में इत्र बनाया जाता है। 3500 ईसा पूर्व मिस्र के शासक रहे फराऊन की समाधि से सुगंध के नमूने मिल चुके हैं। बाइबल में बताया गया है कि मिस्र के लोगों ने 2000 ईसा पूर्व इत्र का आयात शुरू कर दिया था। 500 ईसा पूर्व में वराहमिहिर ने ‘वृहत्संहिता’ लिखी थी। इसमें भी 46 गंध द्रव्यों का जिक्र मिलता है।
अब खुशबू, इत्र या सुगंध को भारत और कन्नौज से समझते हैं। ‘श्री कालीचरण टंडन अभिनंदन ग्रंथ’ में जगत नारायण कपूर ने लिखा है, सातवीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के दौर में जब कन्नौज भारत की राजधानी था तो सुगंधित लेप, तेल और चेहरे को सुंदर बनाने वाली प्रसाधन सामग्री खूब चलन में थी। हिंदू कला और संस्कृति के चरमोत्कर्ष के दौर में सुंगधि उद्योग पूरी तरह जम चुका था। वाणभट्ट की महाकृति ‘हर्षचरित’ में ज़िक्र आता है कि सम्राट हर्षवर्धन की बहन राज्यश्री की शादी के पहले लोगों के स्वागत के लिए पान, इत्र और फल बांटे गए। मलिका नूरजहां की मां ने सम्राट जहांगीर को जो इत्र पेश किया था, उसे ‘इत्र जहांगीरी’ का नाम दिया गया था। मुगलकाल में ही इत्र की व्यवस्था करने वाले अधिकारी को ‘दरोगा-ए-खुशबू’ कहा जाता था।
भारत के अलावा मिस्र, फारस और चीन में भी इत्र बनाने का काम चल रहा था। ‘दूरज-अबरी’ नाम की किताब में बताया गया है कि शाहजहां के दरबार में फारस और कन्नौज के इत्र व्यापारी एक साथ पहुंचे थे, लेकिन सबसे बढ़िया इत्र तो कन्नौज का ही माना गया। लखनऊ के नवाब भी इत्र के आशिक़ थे। उल्लेखनीय है कि उत्तर वैदिककाल से पूर्व मध्य काल तक कन्नौज पंचाल राज्य का हिस्सा था। बाद में इसी पंचाल को कान्यकुब्ज भी कहा गया, जो आगे चलकर कन्नौज हो गया। साहित्य और अभिलेखों में कन्नौज के वैसे तो कई नाम मिलते हैं, लेकिन दो नाम ध्यान खींचते हैं, कुसुमपुर और पुष्पावती। ये नाम बताते हैं कि कन्नौज का इत्र और फूलों से पुराना रिश्ता है। एक बात और, साहित्यिक और पुरातात्विक साक्ष्यों में सुगंध केंद्र हड़प्पा, तक्षशिला, साकल, मथुरा, उज्जयिनी, कौशांबी, काशी, पाटलिपुत्र, प्रतिष्ठान, मदुरई और कांचीपुरम थे, लेकिन फिलहाल सिर्फ कन्नौज ही इत्र की खुशबू बिखेर रहा है।
सवाल है कि इत्र बनाने के लिए फूलों का इंतजाम कहां से होता है? कन्नौज में मौसम के हिसाब से मोगरा, चमेली, गुलाब, जूही और मेहंदी के फूलों की खेती होती है। ‘द अतर्स एंड परफ्यूमर्स असोसिएशन’ के अध्यक्ष पवन त्रिवेदी खुशबू के कारोबार के बारे में विस्तार से बताते हैं। वह कहते हैं, ‘अब कन्नौज का इत्र कारोबार बेला, मेहंदी और गुलाब पर ज्यादा निर्भर है। गुलाब की फसल साल में तीन बार मिलती है। अप्रैल से जून की तेज गर्मी में खुशबूदार बेला आता है, तो मई से अक्टूबर-नवबंर के बीच भीनी खुशबू वाले मेहंदी के फूल आते हैं। खाने में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले केवड़े के लिए इत्र कारोबारी ओडिशा जाते हैं। समुद्री जलवायु में केवड़े के फूल खूब खिलते हैं। राजस्थान और उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे बसे शहरों में खस की खेती होती है। खस एक तरह की घास होती है, जिसका इत्र गर्मियों में तन-मन को तरोताज़ा कर देता है। हर तरह के इत्र के बेस मटीरियल यानी चंदन के तेल के लिए लकड़ी पहले दक्षिण भारत के राज्यों से आती थी, लेकिन फिलहाल चंदन की लकड़ी और तेल ऑस्ट्रेलिया से आ रहे हैं। अगर की लकड़ी असोम और पूर्वोत्तर के राज्यों से आती है। फूलों के अर्क की प्राकृतिक खुशबू और ताजगी बरकरार रखने के लिए ओडिशा, पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत में कन्नौज के इत्र कारोबारियों ने छोटे प्लांट लगा रखे हैं। वहां फूलों की सुगंध निकालकर प्रॉसेसिंग के लिए कन्नौज भेजा जाता है। गुलाब का इत्र अलीगढ़ में भी बनाकर लाया जाता है’।