मुज़फ्फरनगर
बहुचर्चित मिलन मार्केट मामला ठंडा होने का नाम नहीं ले रहा है। आज तक जनपद के कई पुलिसकर्मियों पत्रकारों एवं समाजसेवी के चेहरे पर एक ही सवाल था, आखिर यह मोटू पतलू कौन है? लेकिन मोटू पतलू दलाल के खुलासे के अलावा एक और सवाल उठता है… आखिर पुलिस से किसके माध्यम से सैटिंग की जा रही है? एएसपी द्वारा बीते महीने मिलन मार्केट में कठोर कार्यवाही करने के बावजूद भी स्थानीय पुलिस इस मामले को ठंडे बस्ते में डालना चाह रही है। जिसका मुख्य स्रोत है “पैसा” क्या सच में पैसे के आगे सब लाचार एवं बेबस दिखाई देते हैं? क्या सच में रिश्वती तंत्र इतना मजबूत है कि पैसा फेंको और तमाशा देखो वाली स्कीम आज भी लागू है? क्या एएसपी द्वारा की गयी कार्यवाही भी पैसों के आगे बोनी है? आपको बता दें कि यह मामला कमजोर होता दिखाई दे रहा है। चर्चित मार्केट से मिली जानकारी के अनुसार पंजीकृत मुकदमे में जल्द ही 2 नाम निकाले जाने वाले हैं क्योंकि आरोपियों द्वारा चौकी में गाजर के हलवे एवं खीर के डिब्बों का आदान प्रदान लाखों रुपए में होने वाली सैटिंग की अटकलों को सही साबित करने वाला है।
पैसा बोलता है:- रंगों के नाम वाले पुलिसकर्मी ने रंग बदल ही डाला, सूत्रों की मानें तो वांछित आरोपियों के नाम निकलवाने को मोटी रकम अपनी मंज़िल पर पहुंची, वांछित चौकियों में ले जा रहे गाजर के हलवे के डिब्बे, जल्द ही मिलेगी नामजद वांछितों को क्लीन चिट……. इतना ही नहीं, थोड़ा गौर कीजिए: उक्त मार्केट से अचानक बड़े पैमाने पर चोरी के वाहनों का जखीरा बरामद होना मात्र इत्तेफाक नहीं है। ये गेम बहुत पुराना है लेकिन पैसों के बल पर सैटिंग ने अपना किला बुलंद किया हुआ था। लेकिन एएसपी द्वारा की गई तत्काल कार्यवाही से मार्किट में बैठकर भोजन (चिकन,बटेर) व सतरंगी शर्बत का लुफ्त उठाने वाले सिपाहियों व कुछ पत्रकारों को अपनी वफादारी दिखाने का मौका भी नहीं मिल पाया। अब वही पुलिसकर्मियों व पत्रकारों द्वारा मामले को ठंडा करने का प्रयास किया जा रहा है। बड़ा सवाल ये उठता है कि आखिर कब तक ऐसे पत्रकार व पुलिसकर्मियों को नजरअंदाज किया जाएगा? आखिर पैसों की खातिर रंगों के नाम वाले पुलिसकर्मी को एएसपी की कार्यवाही का भय नहीं है? आखिर कब तक आरोपी पैसे देकर कानून व्यवस्था के खरीदार बनते रहेंगे???