मुज़फ्फरनगर
जोधपुर
पूरी दुनिया में हर साल 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। अपने घर से लेकर देश की तरक्की में महिलाओं ने हर संभव अपना योगदान दिया है। साल के 365 दिन उनके त्याग और परिश्रम के लिए न्यौछावर किये जाए तो भी कम है मगर इस एक दिन समाज महिलाओं द्वारा की गयी हर तपस्या का सम्मान करता है। शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र होगा जहां महिलाओं ने अपने हाथ न आजमाए हों। नारी इस शब्द में इतनी ऊर्जा है, कि इसका उच्चारण ही मन-मस्तक को झंकृत कर देता है। नारी शब्द का पूर्ण स्वरूप मातृत्व में विकसित होता है। नारी, मानव की ही नहीं अपितु मानवता की भी जन्मदात्री है, क्योंकि मानवता के आधार रूप में प्रतिष्ठित सम्पूर्ण गुणों की वही जननी है। जो इस ब्रह्माण्ड को संचालित करने वाले विधाता है, उसकी प्रतिनिधि है नारी। अर्थात् समग्र सृष्टि ही नारी है, इसके इतर कुछ भी नही है। इस सृष्टि में मनुष्य ने जब बोध पाया और उस अप्रतिम ऊर्जा के प्रति अपना आभार प्रकट करने का प्रयास किया तो बरबस मानव के मुख से निकला कि :-
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विधा द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देव देव॥
अर्थात हे प्रभु तुम मां हो…।
अक्सर यह होता है कि जब इस सांसारिक आवरण में फंसते या मानव की किसी चेष्टा से आहत हो जाते हैं तो बरबस हमें एक ही व्यक्ति की याद आती है और वह है मां। अत्यंत दुख की घड़ी में भी हमारे मुख से जो ध्वनि उच्चारित होती है वह सिर्फ मां ही होती है। क्योंकि मां की ध्वनि आत्मा से ही गुंजायमान होती है । और शब्द हमारे कंठ से निकलते हैं, लेकिन मां ही एक ऐसा शब्द है जो हमारी रूह से निकलता है। मातृत्वरूप में ही उस परम शक्ति को मानव ने पहली बार देखा और बाद में उसे पिता भी माना। बन्धु, मित्र आदि भी माना। अंतरिक्ष हो या प्रशासनिक सेवा, शिक्षा, राजनीति, खेल, मीडिया सहित विविध-विधावों में अपनी गुणवत्ता सिद्ध कर कुशलता से प्रत्येक जिम्मेदारी के पद को संभालने लगी है, आज आवश्यकता है यह समझने की, कि नारी विकास का केंद्र है और भविष्य भी उसी का है। स्त्री के सुव्यवस्थित एवं सुप्रतिष्ठित जीवन के अभाव में सुव्यवस्थित समाज की रचना नहीं हो सकती। अतः मानव और मानवता दोनों को बनाए रखने के लिए नारी के गौरव को समझना होगा। आज भारतीय महिलाएँ आकाश तक पहुंच गई है, लेकिन फिर भी समाज के किसी कोने में दहेजप्रथा, भ्रूण हत्या और घरेलू हिंसा ने अपने पैर अब तक जमाये हुए है। अतः इन सब के बीच खुशी की बात यह है की आज की दुनिया में भारतीय महिला की एक अलग ही पहचान बनी है। भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी, दुर्गा व लक्ष्मी आदि का यथोचित सम्मान दिया गया है अत: उसे उचित सम्मान दिया ही जाना चाहिए।