पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को इस्लामाबाद हाई कोर्ट परिसर से जिस तरह धकियाते हुए गिरफ्तार किया गया और अदालत ने उनकी गिरफ्तारी को वैध करार दिया उससे यदि कुछ स्पष्ट हुआ तो यही कि सेना और सरकार के साथ न्यायपालिका भी उन्हें सबक सिखाना चाह रही है। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि भ्रष्टाचार के मामले में उनकी गिरफ्तारी पाकिस्तानी रेंजर्स के जवानों ने की है, जो सेना के तहत काम भी करते हैं।इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थकों ने सड़कों पर निकलकर केवल उत्पात ही नहीं मचाया साथ ही सैन्य ठिकानों को भी निशाना बनाया गया। उन्होंने न केवल रावलपिंडी में सेना मुख्यालय पर धावा बोला, बल्कि लाहौर में कोर कमांडर के घर को भी तहस-नहस कर दिया है। इसके अलावा अन्य शहरों में भी सेना के ठिकानों में घुसकर तोड़फोड़ करी गई है।सड़कों पर उतरकर हिंसा कर रहे इमरान खान के समर्थक सेना के अफसरों को जिस तरह खुलेआम गालियां भी दे रहे हैं, वह काफी अभूतपूर्व है। पाकिस्तान के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ और वहां आज तक किसी भी नेता ने सेना के खिलाफ उस तरह खुल कर खड़े होने की हिम्मत भी नहीं दिखाई, जैसी इमरान खान ने दिखाई है। विडंबना यह है कि इमरान खान उसी सेना के बैरी बन बैठे हैं, जो उन्हें छल-बल से सत्ता में लाई थी। और इसमें दो राय भी नहीं कि इमरान जबसे सत्ता से बाहर हुए हैं, तबसे उनकी लोकप्रियता भी बढ़ी है, लेकिन वह यह भूल गए कि पाकिस्तान में सेना से बैर लेकर कोई अपनी राजनीति नहीं चला सकता और भले ही कोई कितना भी लोकप्रिय क्यों न हो। इमरान खान के समर्थक चाहे जितना उत्पात मचा रहे हो वे सेना की सख्ती का सामना नहीं कर सकते। सेना के रवैये से यह स्पष्ट है कि वह इमरान खान के समर्थकों के उत्पात को सहन करने के लिए तैयार नहीं और चंद दिनों में ही वह इमरान के साथ खड़े लोगों के जोश को ठंडा भी कर दे तो इसमें हैरानी नहीं। सेना केवल इतने तक ही सीमित नहीं रहेगी।