क्या है सरबत खालसा, अमृतपाल सिंह कर रहे मांग

खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह अभी तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर चल रहे है। हालांकि इस दौरान उसकी तरफ से दो वीडियो और एक ऑडियो जारी कर अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह से आने वाली बैसाखी पर ‘सरबत खालसा’ बुलाने की मांग करी गई है।
अमृतपाल सिंह ने अपने वीडियो में यह कहा है कि आने वाली बैसाखी पर तलवंडी साबो में तख्त श्री दमदमा साहिब पर सरबत खालसा बुलाया जाना चाहिए । तो आइए आपको बताते हैं क्या है ‘सरबत खालसा’ और क्यों अमृतपाल कर रहा है इसे बुलाने की मांग।
जानिए क्या है सरबत खालसा?
शब्द सरबत का मतलब है ‘सभी’ से है जबकि खालसा का अभिप्राय ‘सिखों’ से हुआ यानी इसका मतलब सभी सिखों के सभी गुटों की एक सभा से है। सिखों के दसवें गुरु- गुरु गोबिंद सिंह की मृत्यु के बाद, सिख मिस्लों (सैन्य इकाइयों) ने समुदाय के लिए बहुत महत्व के राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए सरबत खालसा बुलाना शुरू किया था। सरबत खालसा की शुरुआत मुगलों के खिलाफ सिखों के संघर्ष के बीच में शुरू हुई थीं। सरबत खालसा का आयोजन साल में दो बार होता है। बैसाखी और दीवाली के अवसर पर इसे अयोजित किया जाता है। सरबत खालसा सिखों की पहली संस्था थी जिसने मानव रूप में गुरु की परंपरा के समाप्त होने के बाद आकार लिया और मिसलों के बीच आंतरिक संघर्षों के बीच बहुत ही प्रभावी भी साबित हुई। सिखों के शुरुआती इतिहास को लिखने वाले इतिहासकार हेनरी प्रिंसेप ने 19वीं शताब्दी के फर्स्ट हाफ में दर्ज किया था कि स्वतंत्रता की अपनी उग्र भावना के बावजूद, सभी सिख मिस्ल बिना किसी संघर्ष के सरबत खालसा में एक ही साथ बैठे।
रणजीत सिंह काल में रुक गया था आयोजन
1799 में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा सिख राज्य की स्थापना ने सिख मिस्लों के युग को समाप्त कर दिया वहीं इसके साथ ही खत्म हो गई सरबत खालसा की जरूरत। और यह उस दौर की शुरुआत भी थी, जिसमें सिखों ने पहली बार आजादी का अनुभव किया था, जिसने उनके अधिकांश मुद्दों को हल कर दिया।