जोशीमठ को बचाने के लिए देश एकजुट खड़ा हो:- आर.के. सिन्हा

देवभूमि के जोशीमठ में तेजी से जमीन धंसने की खबरों को देख-सुनकर सारे देश का चिंतित होना स्वाभाविक है। जोशीमठ में अफरा-तफरी का माहौल है। दरारों से भरी हुई सड़कें और मकान भय और आतंक दोनों उत्पन्न करते हैं। इस समय सारा देश जोशीमठ और उत्तराखंड की जनता के साथ खड़ा दिख रहा है। जोशीमठ शहर पर ज़मीन में समाने का ख़तरा लगातार बढ़ता ही चला जा रहा है। इस पूरे क्षेत्र को ‘सिंकिंग ज़ोन’ करार दिया गया है। तेज़ी से बदलते हालात की वजह से आपदा प्रभावित इलाकों में रहने वाले हज़ारों परिवारों को पुनर्वास केंद्रों में ले जाया जा रहा है। अब जोशीमठ में ताजा स्थिति के लिए पर्यटन, अवैध निर्माण और सुरंगों और बांधों का निर्माण बताया जा रहा है। कहने वाले तो यह भी कह रहे हैं कि अनियंत्रित भवन निर्माण को देख भूकम्प भी जोशीमठ को घूर रहा है। इसलिए जोशीमठ का अस्तित्व खत्म होता नजर आ रहा है। वहां पर जमीन के अंदर भारी भरकम सुरंग तो खोद दिए गए, लेकिन राज्य के पर्यावरण की अनदेखी की गई। जोशीमठ मे भयावह स्थिति के चलते स्थानीय जनता की आंखों में सिर्फ आंसू के अलावा कुछ नहीं है। जीवन भर की कमाई से मकान बनाने वालों को अपनी आंखों के सामने उनको जमींदोज होता देखना पड़ रहा है।
जोशीमठ ग्लेशियर के मलवे पर बसा शहर है, जिसकी जमीन बहुत मजबूत नहीं है। इस बात का उल्लेख 50 साल पहले की एक रिपोर्ट में किया भी गया था। इस रिपोर्ट में अनियोजित विकास के खतरों को रेखांकित करते हुए चेतावनी दी गई थी कि जोशीमठ में छेड़खानी के परिणाम भारी पड़ सकते हैं । रिपोर्ट में जड़ से जुड़ी चट्टानों, पत्थरों को बिल्कुल भी न छेड़ने के लिए कहा गया था। वहीं यहां हो रहे निर्माण को भी सीमित दायरे में समेटने की सलाह की गई थी। पर इन सिफारिशों को अनदेखा किया गया। इसके बाद और भी अध्ययनों में भी ऐसी ही बातें सामने आईं कि इस पहाड़ी इलाके में विकास के नाम पर चल रही बड़ी परियोजनाएं आखिरकार तबाही का कारण बन सकती हैं।