Uttarpradesh

वर्ष 2000 में भारत सरकार ने बैन की थी मांगुर मछली की हो रही है खुलेआम बिक्री

 अभिषेक गुप्ता की रिपोर्ट

कमालगंज   मीट बाजार में मांगुर मछली खुलेआम बिक रही है, जबकि सरकार ने इसकी बिक्री पर पूर्ण रुप से प्रतिबंध लगा दिया है। इसके बावजूद बाजार में कुंटलों मछली बिकती पायी गयी।

जानकारी के अनुसार रविवार को कमालगंज के मीट बाजार में जब समृद्धि न्यूज की टीम पहुंची, तो वहां देखा कि मांगुर मछली की काफी मात्रा में बिक्री होती पायी गयी। लोग बड़े चाव से इसे खरीद रहे थे। जबकि भारत सरकार ने इसे वर्ष २००० में पूरी तरह से वैन कर दिया था, क्योंकि इसको खाने से कैंसर तथा अन्य प्रकार की बीमारियों होने का खतरा रहता है। बताते चलें कि मछली व्यापारी सर्वेश कुमार एवं सतीशचंद्र, राजू के द्वारा इस मछली को कुंटलों की तादात में उतरवायी जाती है और धड़ल्ले से बेची जाती है। जिसके मुख्य कारण यह है कि यह मछली सस्ती मिलती है। जिससे अच्छी आमदनी होती है। भोले भाले ग्रामीण इसके दुष्परिणाम से अंजान होकर इसके धड़ल्ले से खरीदकर इसका मांस खा रहे हैं। हालांकि मतस्य विभाग के अधिकारियों से जब इस संबंध में बात करनी चाही, तो उनका मोबाइल स्वीच आफ मिला। बताते चलें कि राष्ट्रीय हरित क्राति न्यायाधिकरण ने 22 जनवरी को इस संबंध में निर्देश भी जारी किए हैं। जिसमें यह कहा गया हैं कि मत्स्य विभाग के अधिकारी टीम बनाकर निरीक्षण करें और जहां भी इस मछली का पालन हो रहा है उसको नष्ट कराया जाए। निर्देश में यह भी कहा गया हैं कि मछलियों और मत्स्य बीज को नष्ट करने में खर्च होने वाली धनराशि उस व्यक्ति से ली जाए जो इस मछली को पाल रहा हो। इस मछली को वर्ष 2000 देश भर में इसकी बिक्री पर प्रतिबंधित लगा दिया गया था। यह मछली मांसाहारी है। यह इंसानों का भी मांस खाकर बढ़ जाती है। ऐसे में इसक सेवन सेहत के लिए भी घातक है। इसी कारण इस पर रोक लगाई गई थी, लेकिन इसके बावजूद भी मछली मंडियों में इसकी खुले आम बिक्री हो रही है। मछली पालक अधिक मुनाफे के चक्कर में तालाबों और नदियों में प्रतिबंधित थाई मांगुर को पाल रहे है, क्योंकि यह मछली चार महीने में ढाई से तीन किलो तक तैयार हो जाती है जो बाजार में करीब 30-40 रुपए किलो मिल जाती है।

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