उत्तर प्रदेश, तालग्राम : चूल्हे पर बनती गरमागर्म रोटी उठता धुआँ, बैलगाड़ियों से आवागमन, खेतों मे हल बैल लिए किसान, आपको वही पुराना साठ के दशक का माहौल अब धीरे धीरे हर जगह देखने को मिलेगा , वजह सत्तर के दशक में जीने का शौक नही बल्कि कमर तोड़ महंगाई है जिसने हर एक की कमर तोड़ दी है गरीब मज़दूर किसान सबके सामने समस्याओं के अंबार लगे हैं, वही किसान को खेती के पुराने ढर्रे पर लौटने लगे हैं। इससे बैलों को तवज्जो मिलने लगी है। एक दूसरे के सहयोग की भावना भी बढ़ी है।
डीजल के दाम बढ़ने से ट्रैक्टर से जुताई और ढुलाई महंगी हो गई है।खेती की लागत में भी इजाफा हुआ है। इससे छोटे और मंझोले किसान बैलों से खेती को तवज्जो देने लगे हैं। यह सस्ती पड़ रही है। लागत भी नियंत्रित हो जाती है। बमरौली निवासी किसान रतीराम ने बताया कि उनके पास तीन बीघा जमीन है। इसी से परिवार की गुजर बसर करते हैं। डीजल की कीमत बढ़ने पर बैलों से खेती करने लगे हैं। बैलों से ही जुताई करते हैं। यह बताते हैं कि जितने खर्च में ट्रैक्टर से जुताई कराते थे, उतने में फसल की बुवाई कर लेते हैं। खेत में तैयार हरा चारा बैलों को खिलाते हैं। गोबर का खाद में प्रयोग करने लगे हैं। यही हाल इलाके के दूसरे किसानों का है।
यूं बढ़े डीजल और जुताई के दाम
2017 में जिले में डीजल का रेट करीब 54.65 रुपये प्रति लीटर था। यह 43 रुपये प्रति लीटर बढ़ चुका है। वहीं फसल के भाव डेढ़ गुना तक नहीं बढ़ सके। पांच साल पहले हैरो से खेत जुताने के लिए करीब 90 रुपये प्रति बीघा देने पड़ते थे। कल्टीवेटर से करीब 50 रुपये प्रति बीघा रेट था। अब किसानों को डीजल की बढ़ी कीमतों के चलते दोगुना रुपये देने पड़ रहे हैं। हैरो से जुताई के 160 से 180 रुपये और कल्टीवेटर से 80 से 90 रुपये चुकाने पड़ रहे हैं।