स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति पूरी दुनिया के लिए एक चुनौती है।

न्यूयार्क (संयुक्त राष्ट्र)। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने बताया कि पूरी दुनिया में स्वच्छ और शुद्ध पेय जल की उपयोगिता तो हैं लेकिन उपलब्धता संकट के बादल मंडला रहे हैं जल के प्रति आगाह करते हुए इस रिपोर्ट में कहा गया है कि किस तरह से पानी की कम उपलब्धता की वजह से पहले से ही दुनिया के करोड़ों लोग मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।
इसमें ये भी कहा गया है कि वर्तमान समय में वाटर मैनेजमेंट, इसकी निगरानी, पूर्वानुमान और वक्त रहते चेतावनी दी जा सकने वाली तकनीकों के बीच सही तालमेल नहीं है। वहीं विश्व स्तर पर किए जा रहे जलवायु वित्त पोषण के प्रयास भी अपर्याप्त हैं
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2018 में करीब साढ़े तीन अरब लोग ऐसे थे जिनके पास वर्ष में केवल 11 माह के लिए जल की सुलभता थी। इसका अर्थ है कि उन्हें एक माह तक जल संकट से जूझना पड़ता था। वहीं, वर्ष 2050 तक ये आंकड़ा 5 अरब हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र की मौसम विज्ञान एजेंसी के महासचिव पेटेरी टालस का कहना है कि धरती का तापमान जिस तेजी के साथ बढ़ रहा है उसकी बदौलत जल की सुलभता में भी बदलाव आ रहा है। जलवायु परिवर्तन का सीधा असर बारिश के पूर्वानुमान और कृषि ऋतुओं पर भी पड़ रहा है। उन्होंने इस बात की भी आशंका जताई है कि इसका असर खाद्य सुरक्षा, मानव स्वास्थ्य और कल्याण पर भी हो सकता है।इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2000 से जल-संबंधी आपदाओं में तेजी हो रही है। यदि पिछले दो दशकों की बात की जाए तो वर्तमान में समय में जल संबंधी त्रासदियों में तेजी आई है। साथ ही इससे होने वाली मौतों का आंकड़ा भी बढ़ा है। इसका सबसे अधिक प्रभाव एशियाई देशों में ही देखने को मिला है। टालस का कहना है कि बीत एक वर्ष के दौरान जापान जापान, चीन, इंडोनेशिया, नेपाल, पाकिस्तान और भारत में जबरदस्त बारिश और इसके बाद ही परेशानियां वाली घटनाएं सामने आई हैं। लाखों लोगों को इसकी वजह से विस्थापित भी होना पड़ा है। यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा किसी एक देश या एक क्षेत्र में देखने को नहीं मिला है बल्कि समूची दुनिया में ये दिखाई दिया है। यूरोप में आई बाढ़ की वजह से कई लोगों की मौत हुई और अरबों रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ।
जल संकट की बात करें तो बीते दो दशकों में भूमि की उपसतह में जल की मात्रा में प्रतिवर्ष 1 सेंटीमीटर की दर से कमी आई है। इसका एक बड़ा प्रभाव अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में भी देखने को मिला है। वहीं बीते दो दशकों में पूरी दुनिया में सूखे की घटनाओं में भी तेजी आई है। इसकी वजह से सबसे अधिक मौत अफ्रीका में हुई हैं। जल संकट पर केंद्रित इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि वर्तमान में करीब 2 अरब लोगों को इसका सामना करना पड़ता है। स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति पूरी दुनिया के लिए एक चुनौती है। इसके लिए रिपोर्ट में कुछ सलाह दी गई हैं। इसमें कहा गया है कि वाटर मैनेजमेंट को सही कर इससे छुटकारा पाया जा सकता है। इसके अलावा निवेश का भी स्तर बढ़ाने की जरूरत है। इस रिपोर्ट में गरीब देशों में सूखा और बाढ़ का पूर्वानुमान और समय रहते चेतावनी देने वाली प्रणालियों को लगाने और इसमें निवेश करने की अपील की है।