आगामी विधानसभा चुनाव के लिए जहां सारी पार्टियां अपनी अपनी छवि बनाने में लगी है। मायावती 2022 को 2007 के फॉर्मूले से जीतना चाहती हैं, जिस तरह से उन्होंने सोशल इंजीनियरिंग का रास्ता चुन माफियाओं से किनारा कर सरकार बनाई थी।
अब वो एक बार फिर से उसी राह पर चल पड़ी हैं। बीएसपी को लगता है कि 2022 के यूपी चुनाव से पहले मुख्तार का जेल से बाहर आना संभव नहीं है। ऐसे में मायावती को लगता है कि पिछले 16 साल से लगातार जेल में रहने की वजह से मुख्तार का मऊ सीट पर दबदबा पहले से कम हो चुका है, क्योंकि पिछले तीन चुनाव मुख्तार अंसारी ने सिर्फ 8 हजार या इससे भी कम वोटों से ही जीता है।
यूपी की योगी सरकार में लगातार माफियाओं के खिलाफ ऑपरेशन चल रहा है, जिससे आम लोगों में सरकार की छवि अच्छी बनी है। ऐसे में विपक्षी दलों पर माफियाओं और बाहुबलियों से दूरी बनाने का नैतिक दबाव बढ़ चुका है। साथ ही पिछले एक दशक में वोटरों का मूड भी बदला है। कभी खलनायकों को अपने वोट के सहारे नायक बनाने वाले वोटर अब ऊबने लगे हैं और साफ सुथरी छवि वाले उम्मीदवारों व विकास की बात करने वालों को ही पसंद कर रहे हैं। यही बात बीएसपी सुप्रीमो भी अच्छे से समझ चुकी हैं कि मुख्तार की वजह से उनको बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है।
इन्हीं सब बातों के चलते मायावती ने यह निर्णय लिया है कि वह मुख्तार अंसारी को अपनी पार्टी में जगह नहीं देंगी ,मुख्तार अंसारी को आगामी विधानसभा में मऊ से टिकट नहीं देने के निर्णय केे बाद मुख्तार ने एक के बाद एक कई ट्वीट कर मायावती पर पलटवार किया।
मुख्तार ने पहला ट्वीट किया कि जनता ने कुल पांच बार विधायक बनाया। दो बार निर्दल उम्मीदवार के रूप में आने पर भी विधायक चुना। जेल में रह कर भी भारी मतों से विजयी बनाया। हमारी ताक़त कोई सियासी पार्टी नहीं, हमारी जनता है, जो हमारी है और हम जनता के हैं।
इसके बाद उनके एक अन्य ट्वीट में लिखा, ”हमें गर्व इस बात का भी है कि हम कभी केवल किसी एक जाति, किसी एक धर्म का वोट पाकर नहीं जीते, बल्कि जनता की मुहब्बतों ने बीच में आने वाली जाति और धर्म की दीवारों को तोड़कर हमें वोट देते आयी है, क्योंकि हमारा और जनता का रिश्ता प्रेम, भाईचारा और सौहार्द का है।”
अगले ट्वीट में मुख्तार ने लिखा, ”हमारी ताक़त हमेशा से आम जनता, समाज का शोषित, वंचित तबका रहा है। हमने जेल में रहने के दौरान भी अपनों का साथ कभी नही छोड़ा, ना उन्हें तनहा महसूस होने दिया। यही वजह है की जनता हमें लगातार अपना नेतृत्व सौंपती आयी है। किसी सत्ताधारी दल के विधायक और हमारे कार्यों को माप कर देखियेगा।”
मुख्तार अंसारी ने जेल में रहते 2007, 2012 और 2017 का चुनाव जीता। जेल से बाहर रहकर भी उसने 1996 और 2002 का चुनाव अपने नाम किया।