भारत को करना पड़ा सिल्वर से संतोष, गोल्ड से चूके सुहास

नई दिल्ली. टोक्यो पैरालंपिक में भारतीय खिलाड़ियों ने पूरे जोर-शोर से भारत का परचम लहराया टोक्यो ओलंपिक में भारत को कुल 18 पदक मिले हैं जिनमें गोल्ड ब्रोंज और सिल्वर शामिल है। सुहास यतिराज (Suhas Yathiraj) ने सिल्वर मेडल जीत इतिहास रच दिया है. 2017 और 2019 में सुहास पैरा बैडमिंटन चैम्पियनशिप में पुरुष एकल और युगल में स्वर्ण जीत चुके है लेकिन टोक्यो पैरालंपिक में सुहास गोल्ड से चूक गए.
एसएल4 क्लास फाइनल में सुहास यतिराज फ्रांस के लुकास माजूर से हारकर गोल्ड मेडल से चूक गए.
माजूर ने सुहास को 15-21, 21-17, 21-15 से हराया. टोक्यो पैरालंपिक (Tokyo Paralympics) में बैडमिंटन में यह भारत का तीसरा पदक है. गौतम बुद्ध नगर (नोएडा) के 38 वर्षीय जिलाधिकारी (डीएम) सुहास पैरालंपिक खेलों में पदक जीतने वाले पहले आईएएस अधिकारी भी बन गए हैं. इससे पहले शनिवार को भारतीय शटलर प्रमोद भगत (Pramod Bhagat) ने कमाल का प्रदर्शन करते हुए बैडमिंटन सिंगल्स एसएल-3 का गोल्ड मेडल जीता था.
ओडिशा के रहने वाले 33 साल के प्रमोद भगत ओलंपिक या पैरालंपिक में गोल्ड जीतने वाले पहले भारतीय शटलर हैं. उनके अलावा इसी इवेंट में भारत के मनोज सरकार (Manoj Sarkar) ने ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया. इसके साथ ही टोक्यो ओलंपिक में भारत की पदकों की संख्या 18 हो गई है. भारत ने अब तक 4 गोल्ड, आठ सिल्वर और छह ब्रॉन्ज मेडल जीते हैं. भारत टोक्यो पैरालंपिक में निशानेबाजी में पांच और बैडमिंटन में तीन पदक जीत चुका है. वहीं भारतीय शटलर कृष्णा नागर फाइनल में पहुंचकर भारत का 19वां पदक पक्का कर चुके हैं.
सफर यतिराज का
कर्नाटक के 38 वर्ष के सुहास के टखनों में विकार है. कोर्ट के भीतर और बाहर कई उपलब्धियां हासिल कर चुके सुहास कम्प्यूटर इंजीनियर है और 2007 बैच के आईएसएस अधिकारी भी. वह 2020 से नोएडा के जिलाधिकारी हैं और कोरोना महामारी के खिलाफ जंग में मोर्चे से अगुआई कर चुके हैं. एनआईटी कर्नाटक से कंप्यूटर इंजीनियर के रूप में स्नातक की उपाधि प्राप्त लेने वाले सुहास इससे पहले प्रयागराज, आगरा, आजमगढ़, जौनपुर, सोनभद्र जिलों के जिलाधिकारी रह चुके है.
सुहास की पेशेवर यात्रा 2016 में शुरू हुई जब वह पूर्वी यूपी के आजमगढ़ जिले के डीएम थे और वहां एक बैडमिंटन चैंपियनशिप का आयोजन किया गया था. सुहास ने कहा कि, ‘मैं टूर्नामेंट के उद्घाटन में अतिथि था और भाग लेने की इच्छा व्यक्त की. तब तक यह मेरे लिए एक शौक था क्योंकि मैं बचपन से बैडमिंटन खेल रहा था. मुझे वहां खेलने का मौका मिला और मैंने राज्य स्तरीय खिलाड़ियों को हरा दिया.’ उन्होंने कहा कि इस जगह पर देश की पैरा-बैडमिंटन टीम के वर्तमान कोच गौरव खन्ना ने उन्हें देखा और इसे पेशेवर के तौर पर अपनाने की सलाह दी. इसी साल उन्होंने बीजिंग में एशियाई चैम्पियनशिप में भाग लिया और स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले गैर-रैंक वाले खिलाड़ी बन गए.