कोरोना की मार से बदहाल अर्थव्यवस्था के लिए, कोरोना से परेशान आम आदमी के लिए और देश की सरकार के साथ शेयर बाज़ार के लिए भी देश की बढ़ती जीडीपी की ख़बर एक बड़ी ख़ुशख़बरी है.
यह ख़ुशख़बरी अचानक नहीं आई है. तमाम अर्थशास्त्री महीनों से बता रहे थे कि ऐसी ही ख़बर आने वाली है. ज़्यादातर अनुमान यही थे कि यह आँकड़ा 18 से 22 फ़ीसदी के बीच आएगा.
शेयर बाज़ार को तो इस आँकड़े का ऐसा इंतज़ार था कि वो पिछले कई दिनों से ही ऊपर की तरफ़ भागने में लगा था. आँकड़ा आने के बाद भी तेजड़िए बेलगाम भागते रहे और सेंसेक्स पहली बार 57 हज़ार 550 के पार पहुँच गया. निफ्टी और सेंसेक्स दोनों ही इंडेक्स रिकॉर्ड ऊंचाई पर बंद हुए हैं.
लेकिन बाज़ार की ख़ुशी के बावजूद सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि अर्थव्यवस्था में या जीडीपी में इस तेज़ उछाल का मतलब सीधे-सीधे यह नहीं मान लेना चाहिए कि अर्थव्यवस्था बहुत तेज़ी से पटरी पर आ रही है और कारोबार में तेज़ उछाल आ चुका है.
आंकड़ों को बताने की बाज़ीगरी
जीडीपी में तेज़ बढ़त के इस आँकड़े की सबसे बड़ी वजह यह है कि पिछले साल इसी तिमाही में देश की जीडीपी 24.4% कम हुई थी यानी देश बहुत बड़ी मंदी की चपेट में आया था. वहाँ से बीस फ़ीसदी के उछाल का भी मतलब यही है कि अभी यह पुराने स्तर से भी कुछ नीचे ही है.
यह चर्चा तो जीडीपी में बढ़त के आँकड़े पर चल रही है, लेकिन अगर ग्रोथ की असलियत को समझना हो तो यह देखना होगा कि भारत की जीडीपी यानी देश में होनेवाले कुल लेनदेन का आँकड़ा क्या है.
जीडीपी के आँकड़े की सरकारी विज्ञप्ति में ही बताया गया है कि पिछले साल अप्रैल से जून के बीच देश की जीडीपी 26.95 लाख करोड़ रुपए थी जो इस साल अप्रैल से जून की तिमाही में बीस परसेंट बढ़कर 32.38 लाख करोड़ हो गई है.