नई दिल्ली। न्यायमूर्ति रमन्ना के समय पर हस्तक्षेप से सरकार, सीबीआई और न्यायपालिका तीनों ही एक बड़े विवाद में फंसने से बच गए। मुख्य न्यायाधीश के दखल के बाद ही सीबीआई निदेशक पद की दौड़ से दो ऐसे अधिकारी बाहर हो गए कि अगर उनमें से किसी एक की भी नियुक्ति हो जाती तो यह मामला गंभीर कानूनी विवाद में वैसे ही उलझ सकता था जैसे यूपीए सरकार के दौरान सीवीसी पद पर केरल कैडर के आईएएस अधिकारी पी.जी. थ़ॉमस की नियुक्ति का मामला कानूनी और अदालती विवाद में फंस गया था और आखिरकार थॉमस को हटाना पड़ा था।
देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की कमान अपने मनपसंद अधिकारी को सौंपने की कोशिश हर केंद्र सरकार की होती है। इसलिए एक जमाने में सीबीआई निदेशक की नियुक्ति सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय की इच्छा से होती थी। लेकिन बाद में सीबीआई को ज्यादा जवाबदेह और स्वायत्त बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने निदेशक की नियुक्ति प्रक्रिया को ज्यादा पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए एक तीन सदस्यीय समिति के गठन का आदेश दिया, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शामिल होते हैं और इस समिति में बहुमत के आधार पर नियुक्ति का फैसला होता है। साथ ही सीबीआई निदेशक के कार्यकाल को भी दो साल की अवधि का कर दिया गया।
इसी कड़ी में सोमवार की शाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समिति की बैठक बुलाई जिसमें मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमन्ना, लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी शामिल हुए। इस बैठक में डीओपीटी द्वारा भेजे गए देश के 16 वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के नामों पर विचार शुरू हुआ। अधीर रंजन चौधरी ने जहां बैठक में भेजे गए नामों की चयन प्रक्रिया पर अपना विरोध जताया, वहीं न्यायमूर्ति रमन्ना ने छह माह के नियम को लागू करने के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का हवाला दिया, जिसके अंतर्गत देश के सभी पुलिस संगठनों के प्रमुख के पद की नियुक्ति में जिस अधिकारी के सेवानिवृत्ति की अवधि छह महीने या उससे कम होगी, उसके नाम पर विचार नहीं किया जाएगा।
सीबीआई भी इसी श्रेणी में है और इस आधार पर बीएसएफ निदेशक राकेश अस्थाना और एनआईए निदेशक वाईसी मोदी के नाम पर विचार नहीं किया जा सकता है। क्योंकि इन दोनों की सेवानिवृत्ति में छह माह से भी कम समय बचा है। राकेश अस्थाना इसी साल 31 अगस्त को और वाईसी मोदी इसी साल 30 मई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक चर्चा में कहा गया कि अगर इन दोनों अधिकारियों के नाम पर विचार हुआ और किसी एक को भी सीबीआई निदेशक बना दिया गया तो इस नियम के आधार पर इस नियुक्ति को उसी सबसे बड़ी अदालत में चुनौती दी जा सकती है, जिसने इस पर फैसला दिया है और अपने ही नियम की अनदेखी अदालत से संभव नहीं हो सकती। ऐसी स्थिति में यह नियुक्ति रद्द हो जाएगी जिससे सरकार के साथ साथ सीबीआई और समिति के सदस्यों की भी फजीहत होगी। बैठक में अधीर रंजन चौधरी ने मुख्य न्यायाधीश की बात का समर्थन किया।
इसके बाद अस्थाना और मोदी के नामों को पैनल से बाहर कर दिया गया और तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों का अंतिम पैनल बनाया गया, जिसमें महाराष्ट्र के पूर्व पुलिस महानिदेशक सुबोध कुमार जायसवाल, एसएसबी के निदेशक के आर चंद्रा और गृह मंत्रालय के विशेष सचिव वीएसके कौमुदी शामिल हैं।
गौरतलब है कि यूपीए सरकार के समय मुख्य सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) पद पर तत्कालीन नेता विपक्ष सुषमा स्वराज के विरोध के बावजूद सरकार ने केरल कैडर के आईएएस अधिकारी पीजी थॉमस की नियुक्ति कर दी थी। सीवीसी नियुक्ति की प्रक्रिया भी सीबीआई निदेशक की तरह ही है। उसके लिए भी प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और मुख्य न्यायाधीश की समिति ही बहुमत से फैसला करती है। उस बैठक में सुषमा स्वराज ने इस आधार पर थॉमस के नाम का विरोध किया था क्योंकि केरल में पामोलिन ऑयल घोटाले में उन पर आरोप था और उसकी जांच चल रही थी। यह अलग बात है कि बाद में थॉमस को उस जांच में क्लीन चिट मिल गई लेकिन तब इसी आधार पर थॉमस की नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और उन्हें हटना पड़ा था। लेकिन इस बार वक्त से पहले मुख्य न्यायाधीश के हस्तक्षेप से ऐसी असहज स्थिति की संभावना ही खत्म हो गई।
दरअसल राकेश अस्थाना और वाईसी मोदी दोनों ही गुजरात कैडर के अधिकारी हैं और जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और गृह मंत्री अमित शाह गुजरात में गृह राज्य मंत्री थे, तब से इन दोनों को बेहद भरोसेमंद माना जाता है। राकेश अस्थाना सीबीआई में विशेष निदेशक पद पर तैनात थे तब तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा के साथ उनके मतभेद झगड़े में बदल गए थे और वर्मा व अस्थाना को रातोंरात सीबीआई से हटाया गया था। वर्मा ने बीच कार्यकाल में अपनी पदमुक्ति को सुप्रीम कोर्टे में चुनौती दी थी और अदालत ने उनका कार्यकाल पूरा होने के महज चंद दिनों पहले ही उन्हें फिर से नियुक्ति का आदेश दिया था। बाद में अपने ऊपर लगे आरोपों से अदालत से क्लीन चिट मिलने के बाद राकेश अस्थाना को पहले नारकोटिक्स ब्यूरो का महानिदेशक बनाया गया फिर उन्हें सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का निदेशक बनाकर नारकोटिस्क ब्यूरो का भी अतिरिक्त कार्यभार दिया गया। वाईसी मोदी एनआईए के निदेशक हैं। माना जाता है कि ये दोनों सीबीआई निदेशक पद के सबसे मजबूत दावेदार थे और संभावना जताई जा रही थी कि इनमें से ही कोई बन सकता है। लेकिन मुख्य न्यायाधीश की सलाह के बाद इन्हें दौड़ से बाहर कर दिया गया।