अर्पित श्रीवास्तव की रिपोर्ट
अतर्रा। नववर्ष के स्वागत में आयोजित काव्य गोष्ठी में कवियों ने इंद्रधनुषी कविताएं सुनाकर श्रोताओं को सराबोर कर दिया। बहुरंगी कविताएं सुनकर श्रोता झूम उठे।
आज दोपहर सचकमल प्रेस, अतर्रा में आयोजित मासिक काव्य गोष्ठी में कवियों एवं श्रोताओं का स्वागत करते हुए आयोजक रमेश सचदेव ने कहा कि कविता जीवन जीने का उत्साह जगाती है। कविता हमारे जीवन के प्रत्येक पल में समाई हुई है। मासिक आयोजन से कविता की एक धारा बह रही है। गोष्ठी की शुरुआत रामकरण साह सजल ने प्रेमपरक रचना पढ़ी –
नजरों से उसने छू लिया मैं टूट गया था।
झटका कोई धक्का नहीं मैं फूट गया था।
शिक्षक साहित्यकार प्रमोद दीक्षित मलय ने वर्तमान परिप्रेक्ष्य को इंगित करते हुए गीत प्रस्तुत किया –
उजले उजले लोगों के मन कितने मैले मैले।
रूप सभी का एक मगर सब अलग अलग हैं थैले।
वरिष्ठ कवि रामावतार साहू ने ग़ज़ल पढ़ी –
रिमोट अपनी जिंदगी का स्वयं अपने पास रखें।
जाने न पाये कांति हरगिज़ चांदनी सा हास रखें।
मूलचंद कुशवाहा ने गीत पढ़कर सराहना प्राप्त की –
नफ़रत की दीवार न होती, आग न लगती पानी में।
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए शिवदत्त त्रिपाठी ने कहा कि साहित्यिक आयोजनों से सामाजिक सौहार्द के साथ समाज में रचनात्मकता का विकास होता है। उन्होंने रचना पढ़ी –
प्यार की राह में चलते चलते क्यों बेगाने हो गये।
सुनील गुप्ता ने भी रचनाएं सुनाईं। इस गोष्ठी में मूलचंद्र सोनी, सिद्धार्थ साहू, मंगल आदि कविताएं सुनकर आनंदित हुए। अगली गोष्ठी 7 फरवरी को होगी।