–प्रमोद दीक्षित मलय
गली-द्वार मुस्काते दीप।
मन को बहुत सुहाते दीप।
धनी-निर्धन में भेद न कर।
मधुरिम प्यार लुटाते दीप।
कष्टों से जो कभी न हारे।
मिलती विजय सिखाते दीप।।
लड़कर सदा अंधकार से।
जल-जल राह दिखाते दीप।
घना कुहरा, गरमी, जाड़ा।
हंस-हंसकर सह जाते दीप।।
महल, कुटीर, खलिहान, खेत।
सभी को मीत बनाते दीप।।
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