• प्रमोद दीक्षित मलय
मन से मन के मृदु तार मिलाएं।
गूंज उठेंगे जीवन वीणा स्वर।
निशिवासर प्रतिपल प्रत्येक प्रहर।
जीवन बगिया में सुमन खिलेंगे,
मृदुल सुवासित शुभ मनसिज मनहर।
जब-जब कोई प्रिय रूठे-टूटे ,
स्नेह-लेप उर हर बार लगाएं।
मन से मन के मृदु तार मिलाएं।।
हो परस्पर प्रीति, विश्वास अटल।
मन मुदित हो प्रशांत, न रहे विकल।
सुख-दुख में बन सहभागी सबके
खुशियां बांटें जग में हो निश्छल।
मन माया, तृष्णा में भटके जब,
मूंद नयन निज प्रभु द्वार लगायें।।
मन से मन के मृदु तार मिलायें।।
जीव प्रकृति से निज नाता जोड़ें।
कलुष, कुभाव, विषमता घट फोड़ें।
ध्वज फहरें नभ, विश्वास-न्याय के,
समरसता की नव धारा छोड़ें।
नवयुग के स्वागत अभिनंदन में,
हृदयों में वंदनवार सजायें।
मन से मन के मृदु तार मिलायें।।
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