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यौन शिक्षा के नाम पर अपने ही बच्चों के साथ ऐसे करती थी ये महिला

जयंतीभाई

केरल की रेहाना फ़ातिमा के इस दावे को अदालत ने नामंज़ूर कर दिया कि यौन शिक्षा देने के लिए उन्होंने उस वीडियो को प्रकाशित किया जिसमें उनके बच्चे को उनके नग्न शरीर पर पेंटिंग करते दिखाया गया है। कोर्ट ने रेहाना को इस आधार पर अग्रिम ज़मानत देने से मना कर दिया।

मामले की सुनवाई करने वाले जज न्यायमूर्ति पीवी कुन्हीकृष्णनने कहा कि वह अपने 14 साल के बेटे और 8 साल की बेटी को जिस तरह से चाहें अपने घर के अंदर यौन शिक्षा देने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन इस बारे में कोई वीडियो जारी करना, जिसमें उनके बच्चे को उनके शरीर पर पेंटिंग करते दिखाया गया है, प्रथम दृष्टया बच्चों को अश्लील तरीक़े से पेश करने का अपराध है।

फ़ातिमा के वीडियो से काफ़ी हंगामा मचा था और इस बारे में दो एफआईआर दर्ज कराई गई हैं। उन पर यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 की धारा 13, 14 और 15, सूचना तकनीक अधिनियम, 2000 की धारा 67B(d) और जुवेनाइल जस्टिस (देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 की धारा 75 के तहत मामले दर्ज किए गए हैं।

रेहाना फ़ातिमा ने अग्रिम ज़मानत के लिए आवेदन दिया था और अपनी दलील में कहा कि उसका उद्देश्य बच्चों को शरीर और उसके विभिन्न अंगों के बारे में बताना था, ताकि वे शरीर को एक अलग नज़रिए से देखें न कि सिर्फ़ यौन उपकरण के रूप में। उसने कहा कि उसने ‘बॉडी पॉलिटिक्स एंड आर्ट’ नामक अभियान चलाया था ताकि शरीर और यौनिकता पर और ज़्यादा बहस हो सके। उसने यह भी कहा कि उसके ख़िलाफ़ आपराधिक मामला नैतिकतावादी सामाजिक चीख-पुकार का नतीजा है।

आगे यह कहा गया कि अगर बच्चे शरीर को उसके प्राकृतिक रूप में देखते हुए बड़े होते हैं तो उनका दिमाग़ महिलाओं के शरीरों के बारे में उत्तेजक कल्पनाओं से मुक्त हो जाएगा।

अदालत को अपने एक नोट में रेहाना ने कहा

“कोई भी बच्चा जो अपनी मां के नग्न शरीर को देखते हुए बड़ा हुआ है, किसी अन्य महिला के शरीर से छेड़छाड़ नहीं करेगा,इसलिए महिलाओं के शरीर को लेकर जो छद्म परिकल्पना और उम्मीद जागती है उसे ख़त्म करने का प्रयास घर से ही शुरू किया जाना चाहिए।”

उन्होंने कहा कि बच्चों के मन में छुटपन से ही महिला और पुरुष के शरीर के बीच में अंतर करने का बीज बो दिया जाता है।

“लैंगिक रूप से निराश समाज में महिला कपड़े में सुरक्षित नहीं है। अब समय आ गया है जब हमें खुलकर बात करना चाहिए कि महिला का शरीर क्या है और यौन और यौनिकता का अर्थ क्या है।”

अदालत ने कहा

“प्रथम दृष्टया राय में याचिकाकर्ता ने “यौन लाभ” के लिए बच्चों का इस्तेमाल किया है क्योंकि जो वीडियो अपलोड किया गया है उसमें बच्चों को बहुत ही अश्लील तरीक़े से पेश किया गया है क्योंकि वे अपनी मां के नग्न शरीर पर पेंटिंग कर रहे हैं।”

अदालत ने कहा कि यह पता करने के लिए कि वीडियो में बच्चों का प्रयोग ‘यौन लाभ’ के लिए हुआ है कि नहीं याचिकाकर्ता को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की ज़रूरत है। अदालत ने कहा कि वह इस बात से इनकार नहीं कर सकती कि आईटी अधिनियम की धारा 67B के तहत भी अपराध हुआ है।

कोर्ट ने कहा कि वह इस बात से सहमत नहीं है कि वह अपने बच्चों को यौन शिक्षा दे रही थी।

कोर्ट ने कहा

“…याचिकाकर्ता ने जब इस वीडियो को सोशल मीडिया पर अपलोड किया तो उसने यह दावा भी किया कि वह समाज में अन्य बच्चों को भी यौन शिक्षा देना चाहती है। याचिकाकर्ता की इस दलील को स्वीकार नहीं किया जा सकता।”

न्यायाधीश ने कहा

“अपने न्यायिक सोच को लागू करने के बाद मैं यह कहने की स्थिति में नहीं हूं कि सोशल मीडिया पर अपलोड किये गए इस वीडियो में अश्लीलता नहीं है।”

कोर्ट ने कहा कि उसका यह मानना प्रथम दृष्टया ज़मानत याचिका पर ग़ौर करने के उद्देश्य से है और इस आदेश का मामले की जांच या आगे की सुनवाई पर असर नहीं होगा।

2018 में फ़ेसबुक पर एक फ़ोटो के माध्यम से धार्मिक भावना को आहत करने के लिए आईपीसी की धारा 295A के तहत रेहाना फ़ातिमा के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया गया था। इस फ़ोटो में वह अयप्पा के अनुयायी की वेश-भूषा में हैं और इसे सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के अवसर पर अपलोड किया गया था। इस तरह केरल हाईकोर्ट ने फ़ातिमा को अग्रिम ज़मानत देने से मना कर दिया।

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