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 “गुलाबो सिताबो” लॉकडाउन में रिलीज हुई पहली बड़ी फिल्म 

 फिल्म समीक्षा

शामी एम् इरफ़ान 

भारत में लॉकडाउन का पांचवा चरण चल रहा है और सिनेमाघर अभी भी बंद पड़े हुए हैं। बहुत दिनों से कोई भी नई फिल्म रिलीज नहीं हुई है और जब तक सिनेमाघर नहीं खुलेंगे किसी भी नई फिल्म का प्रदर्शन सिनेमाघर में नहीं हो सकेगा। इस दौरान एक बड़ी फिल्म रिलीज हुई है और वह भी ओटीटी के प्लेटफार्म पर, अमेजॉन प्राइम पर। रॉनी लाहिड़ी और शैल कुमार द्वारा निर्मित तथा शुजीत सरकार निर्देशित फिल्म गुलाबो सिताबो का प्रीमियर 12 जून को अपने पूर्व निर्धारित समयानुसार हुआ है। यह फिल्म आप घर बैठे कभी भी देख सकते हैं।

यह फिल्म सिनेमाघर के लिए ही बनी थी किंतु लाॅकडाउन के चलते फिल्म के निर्माताओं ने अपनी फिल्म को ओटीटी पर रिलीज करने के लिए सोचा। हालांकि फिल्म निर्माताओं के इस निर्णय से कुछ फिल्म वितरक एक्जीबीटर्स नाराज भी हुए कि, भविष्य में उनकी कोई फिल्म सिनेमा घर में प्रदर्शित नहीं करेंगे। इसके बावजूद निर्माताओं पर कोई असर नहीं पड़ा, उन्होंने अपनी फिल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजॉन प्राइम पर रिलीज कर दिया है।

इस फिल्म की कहानी नवाबों के शहर लखनऊ की है।लखनऊ में एक पुरानी खंडहर नुमा हवेली है फातिमा मंजिल, जिसमें मिर्जा (अमिताभ बच्चन) अपनी बेगम (फारूक़ जाफर) के साथ रहते हैं और इसी में रहते हैं उनके पांच किराएदार। मिर्जा अपने किरायेदारों से परेशान हैं और किराएदार मिर्जा से परेशान हैं। उन्ही पांच किरायेदारों में एक है बांके रस्तोगी। बांके और मिर्जा के बीच हमेशा तू तू मैं मैं लगी रहती है। मिर्जा हवेली हथियाना चाहते हैं, उसे बेचना भी चाहते हैं लेकिन यहां भी उन्हें परेशानी आती है क्योंकि हवेली उनसे अपनी उम्र में 15 साल बड़ी उनकी बेगम पख्तो बेगम के नाम है और वह बेच नहीं  सकते। हवेली को लेकर पूरी फिल्म की कहानी मिर्जा के इर्द-गिर्द घूमती है। फिल्म में मिर्जा और बांके का किरदार देखकर लगेगा, यह दोनों किरदार कार्टून फिल्म टॉम एंड जेरी जैसा ही है। इस फिल्म में एक दृश्य भी आता है जहां बांके की बहन टॉम एंड जेरी देख रही है। इससे लगता है लेखिका ने अवश्य इन किरदारों को ध्यान में रखा होगा। बांके और मिर्जा की रार-तकरार यूपी का तमाशा गुलाबो सिताबो की याद दिलाती है। बेगम का मिर्जा के साथ अपने शौहर को छोड़ कर भागना और फिर अपने शौहर के पास वापस जाना यह बताने के लिए काफी है कि प्यार कभी भी किसी से भी हो सकता है। हवेली के प्रति दोनों किरदारों के मन में लालच है। बांके एक दिन कॉमन टॉयलेट की दीवार को तोड़ देता है, जिसके बाद मिर्जा अपने इस फसाद को निपटाने पुलिस स्टेशन पहुंचते हैं। इसी बीच एंट्री होती है आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (लखनऊ सर्कल) के मिस्टर गणेश मिश्रा (विजय राज) की। गणेश धौंस दिखाने वाला एक चालाक ऑफिसर है, जो यह भांप लेता है कि यह जर्जर खंडहर नैशनल हैरिटेज प्रॉपर्टी (शायद नहीं भी) बन सकता है। वह बांके को कन्विन्स करता है कि कैसे उसका प्लान उनके (बांके) और बाकी के किराएदारों के लिए बेहतर साबित हो सकता है। लेकिन मिर्जा भी बेवकूफ नहीं हैं और वह प्रॉपर्टी के लफड़ों को सुलझाने में माहिर है वकील बृजेन्द्र काला का सहारा लेते हैं। फिल्म में एक संवाद है बांके मिर्ज़ा से कहता है “आपकी कोई औलाद नहीं है और मेरा कोई बाप नहीं है” मतलब साफ जाहिर है वह चाहता है कि दोनों मिलकर रहे और ना हवेली बिके ना कोई किराएदार अपना घर खाली करे। खैर, फिल्म क्या है यह फिल्म देखने पर ही आपको मालूम होगा। मैं आपको बिलकुल नहीं बताऊंगा।

यह फिल्म समाज और लोगों की सोच पर एक व्यंग्य की तरह है। मिर्जा में प्रॉपर्टी को लेकर जबरदस्त लालच और इसे लेकर वह शांत नहीं बैठता। वहीं बांके एक गरीब लड़का है जो फैमिली की जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा हुआ है। आटा की चक्की से अपने परिवार का गुजारा करता है। वह मिर्जा को खीझ दिलाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार नजर आता है और आज की युुवा पीढ़ी की सोच भी बांके उसकी छोटी बहन के माध्यम से दर्शकों को परोस दिया गया है।

लखनऊ का माहौल, वहाँ की सौ साल पुरानी हवेली, मिर्जा और बेगम के साथ-साथ किरायेदारों का रहन-सहन, प्रभावी पोशाक, लुक, गेटअप, मेकअप, बातचीत कितना भी परफेक्ट क्यों न हो, किरदारों को गढने में कमी लगती है। यह इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी है। जुही चतुर्वेदी को शायद लखनउ की तहजीब, मकान मालिक व किराएदारों के हक वगैरह की कोई जानकारी नहीं है। जबकि इन्ही किरदारों के साथ अति बेहतरीन फिल्म बनायी जा सकती थी। पर वह किरदारों का चरित्र चित्रण, उनके बीच की नोकझोक व रिश्ते में मानवीय भावनाओं व पहलुओं को गढ़ने में बुरी तरह से विफल रही हैं। मिर्जा और बांके के बीच की नोकझोंक को अहमियत देकर इसे अच्छे ढंग से लिखा जाता, तो शायद फिल्म और अच्छी हो जाती, मगर लेखिका ने इस नोकझोंक से ज्यादा महत्व पुरातत्व विभाग व कानूनी पचड़ों को दे दिया है, जिससे फिल्म ज्यादा निराश करती है। बतौर लेखिका जुही चतुर्वेदी असफल रही हैं।

इस फिल्म में कलाकारों की परफार्मेंस की बात की जाए तो, मिर्जा के किरदार में अमिताभ बच्चन बिल्कुल फिट है लेकिन उनका मेकअप इतना ज्यादा है कि, उनके चेहरे का एक्सप्रेशन मेकअप – गेटअप के कारण नजर नहीं आता। आयुष्मान खुराना कमाल के अभिनेता हैं लेकिन इस फिल्म में उनका किरदार उतना बढ़िया नहीं, जैसे उनकी पहले की फिल्मों में रहा है। फारुख जाफर का फिल्म में रोल तो बहुत छोटा है लेकिन उन्होंने अपनी उम्र के हिसाब से बहुत ही शानदार अभिनय किया है। विजय राज अपने किरदार के साथ पूरा पूरा न्याय करते हैं। वकील स्टीफन क्लार्क यानी बृजेंद्र पहला जब भी आते हैं तो ऐसा लगता है यह दृश्य उन्हीं के लिए लिखा गया है, वह सबका दिल जीत लेते हैं। गुड्डो की भूमिका में सृष्टि श्रीवास्तव और बांके की गर्लफ्रेंड की भूमिका में पूर्णिमा शर्मा ने ठीक-ठाक काम किया है। पुलिस वाला बन कर आया संदीप यादव भी अपनी पहचान दर्ज कराते हैं लेकिन इन सब के ऊपर भारी पड़ता है मिर्जा का नौकर शेखू। शेखू की भूमिका इस फिल्म इस फिल्म में निभाई है नलनीश नील ने। अन्य कलाकारों ने अपने किरदार के अनुरूप बढ़िया सपोर्ट किया है।

कहने के लिए यह एक कॉमेडी फिल्म है लेकिन जूही चतुर्वेदी टेंशन के ट्रैक पर कॉमेडी भूल जाती हैं। उनके लिखे संवाद कहीं-कहीं अच्छे हैं। निर्देशक शुजीत सरकार ने संतुलन को बनाए रखते हुए फिल्म का निर्देशन किया है। फिर भी फिल्म की गति धीमी है। यहाॅ वह असफल से लगते हैं। अमित मुखोपाध्याय ने बहुत ही सुंदर फोटोग्राफी की है। फिल्म की एडिटिंग ठीक-ठाक है। फिल्म में तीन संगीतकार शांतनु मोइत्रा, अभिषेक अरोड़ा और अनुज गर्ग। उनके साथ तीन गीतकारों पुनीत शर्मा, दिनेश पंत और विनोद दुबे ने गीत लिखे हैं। फिल्म के एल्बम में 6 गाने हैं लेकिन फिल्म में 4 गाने ही इस्तेमाल किए गए हैं और चारों गाने बैकग्राउंड में हैं। लिप सिंक किसी भी गाने का नहीं है। विनोद दुबे का लिखा व गाया गीत “क्या लेके आयो जग में” संगीत प्रेमियों के बीच बहुत ही ज्यादा चर्चित हो चुका है।

कुल मिलाकर यह एक क्लासिक फिल्म है। इसको ज्यादा लोग नहीं पसंद करेंगे, ऐसा भी हो सकता है लेकिन अमेजॉन प्राइम पर जिस तरह से दर्शकों ने इस फिल्म को अपना प्यार दिया है उससे तो यही लगता है कि यह फिल्म दर्शकों में हमेशा हमेशा पसंद की जाती रहेगी। यह फिल्म सिनेमाघरों में प्रदर्शित नहीं हुई, इस लिए बॉक्स ऑफिस कलेक्शन की बात करना बेवकूफी होगी। अभी तक कोई ट्रेड पंडित पैदा नहीं हुआ, जो यूट्यूब या ओटीटी से होने वाली कमाई का आंकड़ा बता सकें। (वनअप रिलेशंस)
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शामी एम् इरफ़ान  (+919892046798)
वनअप रिलेशंस न्यूज एंड फीचर्ससर्विस,  मुम्बई।

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