Punjab

दर्द भरे वो खूनी दिन, एक ओर खुशी का माहौल तो दूसरी ओर मौत का सबब

विक्रम के साथ विकास की रिपोर्ट

बरनाला। जून 1984 पंजाब के इतिहास का वह दिन जिसको पंजाब के लोग अपने मनों से कभी भुला नहीं सकते,जिला बरनाला का गांव संगेडा के कुछ परिवार ऐसे भी हैं जिनके मनों में आज भी 84 का वह खूनी दिन भुलाए नहीं भूलता,यह दर्द भरा खूनी दिन की दास्तां खुद उन पीड़ित परिवारों की जुबानी।

यह एक बुजुर्ग महिला है, हरबंस कौर, जिनके 8 परिवार के सदस्यों की जून 1984 में मृत्यु हो गई, उनके पूरे परिवार को नष्ट कर दिया। बुजुर्ग महिला ने कहा कि जब वह नया ट्रक लेने की खुशी में उसके परिवार के सदस्य और गांव के करीबी लोग स्वर्ण मंदिर अमृतसर में मत्था टेकने गए 3 जून को वहां पहुंचे थे और 4 की सुबह जब उठे नहाने धोने की तैयारी चल रही थी तभी 5:00 बजे के करीब गोलियों की आवाज सुनकर घबरा गए सब कुछ दिखना बंद हो गया जैसे तैसे अपनों को छुपाने के लिए कनक की बोरियों के पीछे छुप कमरों में बंद करके अपने आप को बचाने की कोशिश की 2 दिन छुप कर बैठे रहे खाने पीने को कुछ नहीं था वहीं जमीन पर बिखरे हुए पानी को ही दुपट्टे में भरकर निचोड़ कर पानी पीकर गुजारा करते रहे पर एक समय कमरों से निकाल निकाल कर और कमरों के बाहर फेंक कर लोगों को मारना शुरू कर दिया माता हरबंस कौर के अनुसार, उनके 11 वर्षीय बेटे जिंदर, 35 वर्षीय पति मिट्ठू सिंह, दो बेटियों गुरमीत कौर, 7 वर्षीय, और हरपाल कौर, 5, को हथगोले द्वारा मार दिया गया।

मामा जोगिंदर सिंह सहित अपने 8 रिश्तेदारों को खोने के बाद हरबंस कौर ने अपनी सुध बुध खो दी। हरबंस कौर ने बताया उसकी गोद में उसकी 2 साल की बेटी बच गई उसे गोद में छुपा कर रखे रही और मन में भय था अगर वह मर गई तो मैं अभी मर जाऊंगी जैसे तैसे उसे बचा कर रखा और आज वही बेटी उसके बुढ़ापे का सहारा है वह केवल एक तरफ से अपने पति मिठू सिंह की बांह देखकर याद करती है और बाकी के बारे में कुछ नहीं जानती। हरबंस कौर कहती है कि परिवार के सभी सदस्यों के चले जाने के बाद, किसी ने उसकी देखभाल नहीं की और उसने अपनी ज़मीन बेच दी और अपने सिर पर छत बना ली और अब वह घर पर पशु पालकर अपना जीवन यापन करती है। 70 के दशक में आई बुजुर्ग माता हरबंस कौर अपनी बेटी और पोती के साथ दिन बिता रही हैं। और बुजुर्ग माता हरबंस कौर अपनी इस दर्दनाक दास्तां को सुनाते सुनाते कई बार रो भी पड़ी ।

जग्गा सिंह ने 84 के उस खूनी दिन में अपने छलनी हुए शरीर को दिखाते कहा कि वह आज भी उस दिन को याद करते हैं। हमने एक नया ट्रक लिया था। घर में खुशी का माहौल था जिसके चलते गांवों के कई परिवार के साथ खुशियां बांटने के लिए दरबार साहिब में माथा टेकने गए। तीन जून को श्री अमृतसर साहिब हरमंदिर साहब पहुंच गए थे अगली सुबह उठे जब हम उठे और नहाने धोने की तैयारी करने लगे। हमारे साथ आए सभी परिवार अलग हो गए। कोई नहाने के लिए गया तो कोई फ्रेश होने के लिए गया। लेकिन पाँच बजे गोलियों की आवाज़ से गोलीबारी शुरू हो गई और वहाँ भगदड़ मच गई। हम सब बड़ी मुश्किल से एक साथ मिले। लेकिन स्थिति बहुत भयावह थी। हज़ारों की तादाद में गोलियां चलाई जा रही थीं। वह पास आते ही छिप गया, वहीं पर कमरों में छुप कर अपनी जान बचाने की कोशिश कर रहे थे हम सब लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, फौज ने लोगों को कमरे से बाहर निकाल दिया, उन्हें आंतकवादी और दहशतगर्द बता दिया, बाकी के कमरों को बंद कर दिया, रात में कमरे में ग्रेनेड फेंके, और सभी को कमरों में बंद कर दिया।

उस माहौल में हमारे साथ गए एक परिवार के आठ सदस्य वहां मारे गए थे जग्गा सिंह ने बताया बेरी पत्नी को भी मार दिया गया और हमारे साथ आए गाँव के दो अन्य परिवार के लोग भी मारे गए। हमें उस माहौल में मृत परिवारों के शव नहीं मिले और हम भी होश में आए जब दो महीने बीत चुके थे और जो बच गए थे होश में आने पर उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। पीड़ित परिवार और जग्गा सिंह देश की सरकारों से नाराज़ हैं क्योंकि उन्हें इस घटना के बाद से कोई उचित मुआवजा या वित्तीय सहायता नहीं मिली है। जग्गा सिंह ने यह भी कहा कि अब भी हम अमृतसर श्री दरबार साहिब जाते हैं, लेकिन आज भी हमें वहाँ कोई कमरा नहीं मिलता है। न ही कोई सुविधा है।

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