अपने खर्च पर किसान बसें भेजकर मंगवा रहे मजदूर

मनोज कुमार की रिपोर्ट
बरनाला। पंजाब में श्रमिकों की कमी के संकट से निपटने के लिए किसान और उद्यमी खुद कदम उठा रहे हैं। दूसरे राज्यों से श्रमिकों को लाने के लिए बसें भेजी जा रही है। धान की रोपाई के लिए मजदूरों की किल्लत का सामना कर रहे किसानों ने अपने स्तर पर बसें भेजकर बाहरी राज्यों से मजदूरों को वापस लाना शुरू कर दिया है। बरनाला जिले से ही अब तक 105 बसें अन्य राज्यें में भेजी जा चुकी हैं।
बरनाला से 14 ट्रांसपोर्ट कंपनियों की 105 बसें भेजकर श्रमिकों को लाया गया वापस
15 दिन में अकेले बरनाला से 14 ट्रांसपोर्ट कंपनियों की 105 बसें उत्तर प्रदेश-बिहार, हरियाणा, आंध्र प्रदेश समेत अन्य राज्यों में भेजी गई।
गांव तपा, धनौला, महलकलां, शैहणा, भदौड़, ठीकरीवाला, संघेड़ा, फरवाही, कैरे, सुखपुरा, खुड्डी व हंडिआया गांवों से गई इन बसों में करीब चार हजार किसानों को लाया गया। इसके लिए किसानों ने एकत्र होकर पहले जिला प्रशासन से बात की और फिर पास के लिए ऑनलाइन आवेदन किया।
रहने, खाने-पीने के साथ हर तरह की सुविधा देने का किसानों ने किया वादा
पास मिलने के बाद किसान बसों में बैठकर खुद बाहरी राज्यों में गए और श्रमिकों को लेकर आए। बरनाला के किसान गुरमेल सिंह व बलजिंदर सिंह और शेरपुर बड़ी के किसान लाडी सिंह ने बताया कि उनके पास 100 एकड़ जमीन है। 31 मई को उन्हें मजदूर लाने के लिए पास मिला तो वे बस लेकर बरेली रवाना हो गए। 3 जून रात को बरेली पहुंचे। 4 जून की सुबह वह 35 मजदूरों को लेकर चल पड़े।
उन्होंने बताया कि एक बस का खर्च करीब पचास हजार चुकाना पड़ रहा हैं। उसका खर्च वे जेब से ही दे रहे हैं। श्रमिकों के संकट पर पूछने पर बताया कि वहां से भी मजदूर आने को तैयार नहीं। ज्यादा पैसों समेत खाने-पीने, रहने व अन्य सुविधाओं का वादा कर उन्हें लाया गया हैं।
पहले खुद आ जाते थे, इस बार जो थे वो भी लौट गए
गांव अतरगढ़ के किसान किसान जगवीर सिंह, भदलवड़ के किसान दीपइंद्र सिंह, नंगल निवासी किसान बग्गा सिंह, किसान सुरजीत सिंह, मक्खन सिंह, जरनैल सिंह व जगसीर सिंह ने बताया कि धान लगाने के लिए उनके पास पहले मजदूर आम थे। हर साल वे खुद ही इस सीजन में आ जाते थे, लेकिन इस बार कोई नहीं आया। जो यहां थे, वे भी लौट गए। उसी कारण धान की रोपाई का काम रुका पड़ा था। वे प्रति एकड़ तीन हजार रुपये व भोजन के साथ-साथ उन्हें लाने व जाने का खर्च अदा करेंगे।
नहीं किया होम क्वारंटाइन, जांच के बाद दी काम करने की अनुमति
डीसी तेज प्रताप सिंह फूलका ने बताया कि किसानों की मांग पर उन्हें वापस लाने के लिए पास बनाकर दिए गए। एसडीएम ऑफिस की निगरानी में ये बसें भेजी गई। मजदूर जिले के विभिन्न क्षेत्रों में पहुंचते हैं, तो सेहत विभाग की टीम उनकी जांच के बाद ही खेतों में काम करने की मंजूरी देती है। उन्हें क्वारंटाइन नहीं किया गया, लेकिन वे निगरानी में हैं।
इसलिए हुए मजबूर
– जो मजदूर बचे थे, उन्होंने प्रति एकड़ तीन हजार की बजाय रेट डबल कर दिए। संगरूर में दो पंचायतों ने ज्यादा पैसे मांगने पर उनके सामाजिक बहिष्कार का एलान भी कर दिया था।
-किसानों ने रोपाई के लिए परिवार व बच्चों का सहारा भी लिया, लेकिन बात नहीं बनी।
-बड़े किसानों के पास सौ-सौ एकड़ जमीन हैं, वहां 12-12 घंटे काम करने के लिए बड़ी संख्या में मजदूर चाहिए।
-जिन श्रमिकों को पक्का किया जाता, दूसरे किसान अधिक पैसों का लालच देकर उन्हें अपने पास बुला लेते। यही कारण हैं कि किसान खुद से अपने मजदूर ले आए।