शादाब जफर शादाब
चांद तारों को ये अम्बर से बुला लेती हैं।
मॉ दुआ कर के खुदा को भी मना लेती हैं।।
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये गुरबत मे।
रख के चूल्हे पे वो पानी को पका लेती हैं।।
भूख होकर भी, मुझे भूख नही ये कह कर।
मॉ ही हो सकती हैं जो भूख छुपा लेती है।।
आया परदेस से बीवी ने अटैची पकडी।
मॉ मुझे दौड़ के सीने से लगा लेती हैं।।
मॉं के बनने की खुशी पाते ही अल्हड़ लड़की।
अपनी आँखों में कई ख्वाब सजा लेती है।।
मेरी कोठी क्या, मौहल्ला भी महक जाता है ।
अपने हाथों से जो मॉ लपटा बना लेती है।।
राज़ खुल जाये ना गुरबत का पडोसी पे कही।
मॉ अंगीठी को धुआँ कर के जला लेती है।।
जब भी घेरा है बुरे वक़्त ने “शादाब” मुझे।
ढाल बन कर के दुआ मॉ की बचा लेती है।।
शादाब जफर शादाब
नजीबाबाद, बिजनौर
9319388015,7078555254