शिक्षक शिक्षिका द्वारा नृत्य किया जाना क्यों हो रहा है वायरल

आत्माराम त्रिपाठी की विशेष रिपोर्ट
लखनऊ–आनंददायी शिक्षण है आज की आवश्यकता, नृत्य और अभिनय हैं शिक्षण विधा के जरूरी अंग।
आजकल एक विद्यालय के शिक्षक -शिक्षिकाओं का कक्षा में नृत्य करता हुआ वीडियो वायरल हो रहा है। जिस पर न केवल चर्चा हो रही है अपितु बिना सोचे समझे लोगों द्वारा टिप्पणियां करते हुए शिक्षक-शिक्षिकाओं को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है मानो उन्होंने कोई बड़ा अपराध कर दिया हो, कोई अमानवीय अमर्यादित आचरण कर दिया गया हो।
उल्लेखनीय है कि महोबा जनपद के एक गांव स्थित प्राथमिक विद्यालय काला पहाड़ी में शिक्षक और शिक्षिकाओं ने कक्षा में नृत्य किया है। जिसे किसी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया जो देखते ही देखते वायरल हो गया और जनपद के शिक्षा विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों ने बिना सच को जाने विवेकहीनता का परिचय देते हुए कार्यवाही करते हुए सभी शिक्षकों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया और जांच बैठा दी है।
यह निलंबन तमाम प्रकार के सवाल खड़े करता है। एक तरफ बेसिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश से जुड़े शीर्ष अधिकारी और खुद बेसिक शिक्षा मंत्री विद्यालयों के बेहतरीन बनाने और बच्चों को आनंददाई शिक्षण प्रदान करने की बात करते हुए लगातार प्रयत्नशील हैं तो वहीं दूसरी ओर सेवारत शिक्षकों के लिए आयोजित होने वाली तमाम प्रकार के प्रशिक्षण में वर्षों से यह बताया जा रहा है कि नृत्य, अभिनय,गीत-संगीत, प्रहसन आदि के माध्यम से शिक्षण को रोचक बना कर विद्यालयों में बाल मैत्रीपूर्ण वातावरण बनाया जाए। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 में भी यह स्पष्ट रूप से संकेत किया गया है कि बच्चों के चेहरे पर मुस्कान हो और विद्यालय सीखने सिखाने के एक आनंददाई केंद्र के रूप में उभरें, इसके लिए बच्चों के साथ पूर्ण गतिविधियां की जानी चाहिए।
जिसमें स्थानीय लोककला-कौशल, गीत, संगीत, नृत्य आदि को प्रस्तुत करते हुए बच्चों को परिचित कराया जाए। निष्ठा (NISTHA) प्रशिक्षण में तो खासतौर से कलाओं के जीवंत प्रयोग करने की अनुशंसा की गई है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि दिल्ली सरकार द्वारा अपने स्कूलों में हैप्पीनेस पाठ्यक्रम चलाया जा रहा है जिसमें नृत्य और संगीत मुख्य रूप से शामिल किया गया है और उसके सकारात्मक परिणाम आए हैं कि उसे देखने के लिए अमेरिका की प्रथम महिला मेलानिया ट्रंप को भी एक स्कूल में जाना पड़ा।
इतना ही नहीं, प्राथमिक शिक्षा पर काम करने वाले दुनिया के शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं का भी कहना है कि परिवारों में आज तनाव का वातावरण बना हुआ है जिससे बच्चे भी अछूते नहीं है। यह तनाव बच्चों की सीखने की प्रक्रिया में बहुत बाधा पहुंचाता है। तनाव से मुक्त होने के लिए आवश्यक है कि शिक्षण में ऐसी तकनीकों, कला-कौशलों और हुनर का प्रयोग किया जाए जिनसे बच्चे तनावमुक्त होकर शिक्षा की धारा से सहजता से जुड़ सकें और कक्षा में बिना भय एवं डर के सीखने-सिखाने की प्रक्रिया गतिमान हो।
यहां यह भी बता देना उचित होगा कि इस समय न केवल उत्तर प्रदेश में बल्कि संपूर्ण देश और दुनिया में प्राथमिक शिक्षा को रोचक बनाने के लिए गीत, नृत्य, नाटकों का प्रयोग किया जा रहा है और तमाम प्रकार की फिल्में भी बच्चों को दिखाई जा रही हैं। बहुत सारे शिक्षक और शिक्षिकाओं ने नित्य और संगीत के माध्यम से शिक्षण कला को बेहतर करते हुए बच्चों के सर्वांगीण विकास में अपना योगदान दे रहे हैं । ऐसे बहुत सारे शिक्षिकाओं और शिक्षकों को शिक्षा विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा पुरस्कृत और सम्मानित भी किया गया है। इसलिए इस प्रकरण को अधिकारियों द्वारा बिना जाने- समझे एकतरफा कार्यवाही कर देने से उन तमाम सारे शिक्षक शिक्षिकाओं का मनोबल टूटा है, वे हताश और निराश हुए हैं जो कक्षा-कक्ष के अंदर नृत्य, संगीत और अभिनय के माध्यम से विभिन्न विषयों को बच्चों के सम्मुख सरलता से प्रस्तुत करने के अभियान में लगे हुए थे।
इसलिए यह बहुत जरूरी हो जाता है कि उक्त प्रकरण के संदर्भों को समझते हुए निर्णय किया जाना चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं की शिक्षक शिक्षिकाओं को पुरस्कार की जगह अपमान और प्रताड़ना झेलनी पड़ रही हो। और यह एक नजीर बन जाए जिससे स्कूलों में कोई भी शिक्षक शिक्षिकाएं ऐसे रोचक नवाचारी प्रयास करने से दूरी बना लें।