आदर्श चंद्र श्रीवास्तव की रिपोर्ट
बस्ती : भारत की मिट्टी की हम बात क्या करें, इस मिट्टी की ही बात निराली है। इसकी सौंधी सौंधी खुशबू हर देश को सौगंधाती है। जी हां, यह भारत की ही मिट्टी है, जो अपने देश ही नहीं दूसरे देश के भी शीश को गर्व से ऊंचा करती है। जो अपने देश का मान बढ़ाती है, लेकिन वह अपनी ही मिट्टी से दूर चली जाती है, फिर यह मां (धरती मां) का ही प्रेम है जो उस भूली बेटी और बेटे को अपने पास बुलाती है। मां अपने आंचल में छिपाती है। हम एक ऐसी ही बेटी का बात कर रहें है, जो भारत से कहीं दूर अमेरिका में अपना नाम कमा रही है, यह बेटी है यूपी के बस्ती की। जो अमेरिका के परमाणु ऊर्जा विभाग की प्रमुख है। आपको बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 24 फरवरी को भारत आ रहे है, जिनके साथ यूपी की यह बेटी भी रहेगी, जिनका ताल्लुक बस्ती के बहादुरपुर गांव से है।
रीता के अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ भारत दौरे पर आने की सूचना के बाद उन के पैतृक गांव बहादुरपुर में खुशी की लहर है। रीता बरनवाल के पिता कृष्ण चन्द्र बरनवाल चार भाई थे, रीता के पिता कृष्ण चन्द्र बरनवाल ने आईआईटी खड़गपुर टॉप किया और 1968 में वे पीएचडी करने के लिए अमेरिका चले गए। पीएचडी कम्पलीट करने के बाद उन्होंने वहीं पर प्रोफेसर की नौकरी ज्वाइन कर ली। शादी के बाद उन्होंने उपनी पत्नी को भी अमेरिका लेकर चले गए, जहां पर उनको तीन बेटियां थी, रीता ने एमआईटी से पदार्थ विज्ञान एंव अभियांत्रिक में बीए पास किया। उसके बाद मिशिगन विश्वविद्यालय से पीएचडी की रीता को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के प्रस्ताव पर जून 2019 में परमाणु ऊर्जा विभाग के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया। अब रीता राष्ट्रपति ट्रंप के डेलिगेशन के साथ भातर दौरे पर आ रही हैं, उनके भारत दौरे की सूचना के बाद उनके पैतृक गांव बहादुरपुर में खुशी की लहर है।
उनकी चाची जानकी बरनवाल जो की काफी बुजुर्ग है अपनी भतीजी को याद करके उनके आंखों में आंसू आ गए, उन्होंने कहा की हमारे बड़े देवर की बेटी है। हमारे देवर कृष्ण चन्द्र बरनवाल हर तीन साल पर घर आते थे और अपनी बेटी को भी साथ लाते थे, उनको अपने गांव से बहुत लगाव था, जब वो घर आते थे तो गांव के ही अंदाज में ढल जाते थे। खाना पीना सब गांव के हिसाब से खाते थे, सब लोग जब घर पर इकट्ठा होते थे तो खूब मनोरंजन होता था। हम लोग गाना गाते थे, खेलते थे, साथ में खाना खाते थे। उन लोगों ने मुझे मां का दर्जा दिया, जब वो अमेरिका जाते थे तो हम लोग एक साथ फोटे खिंचवाते थे। जब रीता बड़ा हो गई तो हमारे देवर कहने लगे की अब लड़कियां गांव नहीं जा पाएंगी। उनकी पढा़ई-लिखाई चल रही थी, जिसके बाद हमारे बड़े देवर कृष्ण चन्द्र बरनवाल की तबियत ठीक नहीं रहती थी, जिसकी वजह से उनका भी आना जाना छूट गया और कुछ साल पहले उनकी मौत हो गई।
वहीं परिजनों का कहना है की रीता बरनवाल 2008 में आखरी बार घर पर आई थी, उसके उन्होंने ने कई बार रीता को घर आने के लिए फोन पर कहा तो उन्होंने कहा की जब भारत आएगी तो गांव पर जरूर आएंगी। अब अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ डेलिगेशन में रीता बरनवाल के आने की सूचना के बाद परिजनों को एक आस जगी है की रीता ने जो वादा किया था शायद वो अपने गांव आकर वादे को पूरा करें। परिजनों ने सरकार से मांग की है की रीता को उनके गांव भेजा जाए, ताकि लोग उन से मिल सके। रीता के भारत दौरे पर आने की सूचना के बाद परिजनों ने कहा की ये हमारे देश के लिए गर्व की बात है की रीता अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ भारत दौरे पर आ रही है, उन्होंने जिस तरह से तरक्की की है और अमेरिका में जिस पोस्ट पर हैं उससे देश का मान बढ़ा है।