पंजाब के लुधियाना में अबतक सबसे ज्यादा बच्चे लापता हुए हैं

विक्की और सरबजीत की रिपोर्ट
लुधियाना। हमारे देश में आज भी लगातार बच्चे लापता होते हैं, जिनमें से कुछ की जानकारी तो मिल जाती है लेकिन कुछ का पता नहीं चलता। बच्चों के लापता होने के बारे में मशहूर आर.टी.आई. एक्टिविस्ट रोहित सभ्रवाल की आर.टी.आई. से कुछ खुलासे हुए हैं। जिसमें 2013 से लेकर 2019 तक बच्चों के लापता होने का डाटा सामने आया है। इस डाटा के अनुसार अभी तक ऐसे 1491 बच्चे लापता हैं, जिनकी कोई जानकारी नहीं मिली।
कुल 6118 लड़कियां और 2314 लड़कों के लापता होने की एफ.आई.आर. दर्ज हुई थी, जिनमें से 2013-2019 तक लापता हुई 5106 लड़कियों को तो ढूंढ लिया गया परन्तु 1012 लड़कियों का अभी तक कुछ नहीं पता चला। इसी तरह लगभग 2314 लड़कों में से 1835 को ढूंढ लिया गया, जबकि अभी भी 479 लापता हैं। रोहित सभ्रवाल ने हमारी टीम के साथ विशेष बातचीत करते हुए बताया कि उनके द्वारा यह आर.टी.आई. अप्रैल, 2019 में लगाई गई थी लेकिन पुलिस प्रशासन द्वारा जो आर.टी.आई. का जवाब उन्हें 35 दिन में देना था, उसके लिए उन्होंने 200 दिनों से भी अधिक का समय ले लिया।
उन्होंने कहा कि पंजाब के लुधियाना में से सबसे ज्यादा बच्चे लापता हुए हैं। यहां 300 से अधिक बच्चे अब तक लापता हुए हैं, जिनकी कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने बताया कि लापता बच्चों के लिए एक कमीशन का भी गठन किया गया और माननीय सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश है कि यदि चार महीनों तक बच्चे नहीं ढूंढ पाए तो कमीशन को जानकारी दी जाएगी। लेकिन उन्होंने कहा कि पुलिस के ढीली कार्रवाई से लग रहा है कि कमीशन को भी इस संबंधी कोई जानकारी नहीं दी गई।
रोहित सभ्रवाल ने कहा है कि उन्हें लग रहा है कि पुलिस इस मामले को दबाने की कोशिश कर रही है और इस मामले में जांच को भी गंभीरता से नहीं ले रही। उन्होंने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो वह हाईकोर्ट का दरवाजा भी खटखटाएंगे। उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी तादाद में बच्चों के लापता होने के बारे में पुलिस की चुप्पी कहीं न कहीं इस ओर इशारा करती है कि इन बच्चों का सौदा किया जाता होगा।
जिक्रयोग्य है कि पुलिस द्वारा गत छह सालों का दिया गया यह डाटा सिर्फ अधिकारक है। यह वही बच्चे हैं, जिनके लापता होने की एफ.आई.आर. दर्ज की गई है, जो गरीब बच्चे या लावारिस बच्चे लापता होते हैं, उनकी संख्या इससे कई गुणा अधिक हो सकती है। जिनकी खोज के लिए न पुलिस द्वारा कोई यत्न किया गया और न ही समाज सेवी संस्थाओं द्वारा।