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अर्जेंटीनियन फिल्म का बॉलीवुड संस्करण ‘जवानी जानेमन’  

मुम्बई से शामी एम इरफ़ान की फ़िल्म समीक्षा 

इस शुक्रवार को सिनेमाघरों में प्रदर्शित फिल्म ‘जवानी जानेमन’ अर्जेंटीना की फिल्म “इगुआलिटा ए मी” (2010) की ऑफीशियल रीमेक है। फिल्म की कहानी दिलचस्प और आकर्षक है। मूल पटकथा का बॉलीवुड संस्करण हुसैन दलाल और अब्बास दलाल द्वारा मजेदार ढंग से हास्य शैली में लिखा गया है। इसलिए फिल्म दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करने में सक्षम है।
भारतीय संस्कृति में परिवार का महत्व सबसे ऊंचा होता है, लेकिन आधुनिकता की लहर में पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव बहुत हावी है। आजकल रिश्तों का महत्व ही नहीं रह गया है। आपसी आत्मीयता, नैतिकता और मानवता खत्म – सी हो गई है। अपनी धुन में रहना और जिम्मेदारी से दूर भागना, आज के स्वार्थी इंसान को खूब भाता है। ऐसे ही आज के समाज की बदलती सोच की फ़िल्म है ‘जवानी जानेमन’, ऐसी कहानी बॉलीवुड फिल्म में शायद पहली बार आई है।
एक भारतीय व्यक्ति जसविंदर सिंह उर्फ जैज़ (सैफ अली खान) लंदन में रहता है और वह शादी के बन्धन में विश्वास नहीं करता है, लेकिन प्यार में यकीन करता है। अपनी जिंदगी मौजमस्ती और अय्याशी में काटना पसंद करता है। अपनी कमाई भी पब और लड़कियों में उड़ाना उसकी आदत है। उसके परिवार में उसके माता-पिता (फरीदा जलाल और शिवेंद्र सिंह महल), बड़े भाई, डिम्पी (कुमुद मिश्रा), भाभी (दीक्षिता पंड्या) और उनके दो बच्चे एक ही शहर में रहते हैं, लेकिन वह एक अलग किराए के मकान में रहता है। जैज़ और डिंपी रियल एस्टेट ब्रोकर हैं और वह दोनो उस जमीन के विशाल भूखंड का सौदा करने की कोशिश कर रहे हैं, जहां मल्लिका (कमलेश गिल) अपना मकान बेचने को राजी नहीं है। मल्लिका को छोड़कर हर कोई इस सौदे के लिए तैयार है।
जैज़ की उम्र ढल रही है, बालों को रंगाना पड़ रहा है पर युवा बने रहने की ललक है कि खत्म नहीं हो रही। वह युवा बने रहने के लिए पार्लर जाता है जहां उसकी दोस्त रिया (कुबरा सैथ) काम करती है। आज़ाद परिंदे की तरह जैज़ की जिंदगी खुशहाल है। उसे ना कोई चिंता, ना जिम्मेदारी, ना भविष्य का ख्याल, बस अपनी मर्ज़ी से ज़िंदगी को जीने की दिनचर्या चलती रहती है। अचानक एक दिन पब में टिया (अलाया एफ) से उनकी मुलाकात होती है। टिया एम्स्टर्डम से आई है, जहां वह अपनी मां अनन्या (तब्बू) के साथ रहती है। टिया भी जैज़ से दोस्ती करती है और जैज़ की जिंदगी में तूफान आ जाता है। टिया उसे अपनी माँ का अतीत बताती है और कहती है कि शायद वह उसकी बेटी है। इसलिए वह डी एन ए टेस्ट करवा लें। जैज़ डी एन ए टेस्ट करवाता है तो उसे एक और झटका लगता है कि, टिया उसी की बेटी है और प्रेग्नेंट भी है। उसकी शादी नहीं हुई है लेकिन टिया अपने पूर्व प्रेमी, रोहन (डांटे अलेक्जेंडर) के बच्चे की माँ बनने वाली है। अब आगे क्या जैज़ टिया को अपनाएगा? या टिया की ज़िंदगी भी उनकी माँ की तरह हो जाएगी? भूखंड बिकेगा या नहीं? बाप – बेटी के रिश्ते का क्या होगा? टिया के पेट में जो बच्चा है, वह दुनिया में आएगा या नहीं? ढेरों सवाल के जवाब फिल्म देखने पर ही मिलेगा।
फिल्म में नवोदित अदाकारा अलाया एफ का अभिनय देखकर आपको आश्चर्य होगा कि, उसने अपनी पहली ही फ़िल्म में इतना बेहतरीन काम कैसे किया। बेहद संजीदा और भावनाओं से भरी भूमिका को अपने अभिनय से अलाया एफ ने जीवंत बना दिया है। उसको इस वर्ष अवार्ड अवश्य मिलेगा। सैफ़ अली खान को पहले से आभिनय में महारत हासिल है। वह अपनी भूमिका में डूब जाते हैं। कमाल का उनका कामिक टाइमिंग भी है। मजा आ जाता है। तब्बू के सीन कम हैं लेकिन जब भी स्क्रीन पर आती हैं, तब दर्शकों का चेहरा हंसी से खिल जाता है। चंकी पांडेय राकी के किरदार में न्याय करते हैं। माता- पिता के किरदार में फरीदा जलाल और शिवेंद्र सिंह महल ने बढ़िया काम किया है। कुमुद मिश्रा का काम भी अच्छा है। कुबरा सैथ दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खींचने में कामयाब रही है। कमलेश गिल भी अपने किरदार से सबका ध्यान आकर्षित करती हैं। डाक्टर के एक सीन में किकू शारदा ने अपनी अमिट छाप छोड़ दी है। उनका अभिनय फनी है और याद रहने वाला है। शेष सभी कलाकारों ने अपने किरदार के अनुसार बहुत बढिया सपोर्ट किया है।
नितिन कक्कड़ का निर्देशन बहुत अच्छा है। उन्होंने फिल्म को इस तरह से परदे पर उतारा है कि, दर्शक मंत्रमुग्ध होकर फिल्म देखता है और उनके कार्य की सराहना करते हुए सिनेमाघरों से बाहर निकलता है। सभी मानवीय भावनाओं को बेहद खूबसूरती से फिल्माया है। लोकेशन का भी बहुत खूबसूरती से उपयोग किया है। मनोज कुमार खतोई की सिनेमैटोग्राफी का बहुत अच्छा सहयोग मिला है। संगीत (गॉरोव-रोशिन और तनिष्क बागची) और गीत (शब्बीर अहमद, शेली और देवर्षि खंडूरी) ठीक-ठाक हैं। ऑरिजनल कम्पोज गाने ही बेहतर है। केतन सोढ़ा का बैकग्राउंड संगीत प्रभावशाली है। प्रोडक्शन डिजाइनिंग (उर्वी कक्कड़ अशर और शिप्रा रावल) और कला निर्देशन (हैरी मिड्स और रिज़वान ठाकुर) बढ़िया है। सचिंद्र वत्स के साथ चंदन अरोरा का संपादन सहयोग ने फिल्म को अप-टू-मार्क बना दिया है।
फिल्म में कुछ घटनाएं ऐसे आती हैं, जिन पर विश्वास करना मुश्किल हो जाता है। विशेष रूप से जैज़ और टिया का मेल – मिलाप, टिया की गर्भावस्था का ट्रैक, टिया द्वारा मल्लिका को आसानी से मकान बेचने के लिए राजी कर लेेेेना। जटिल समस्याओं का समाधान भी एक पल में सिर्फ बॉलीवुड की फिल्मों में ही होता है। यह फिल्म भी ऐसी होनी अनहोनी से हटकर नहीं है। मजेदार बात यह है कि, इन सब से फिल्म में एक दिलचस्प मोड़ आता है, जिसका दर्शक भरपूर आनंद लेते हैं।
पूजा इंटरटेन्मेंट, ब्लैक नाईट फिल्मस, नॉर्थन लाइट फिल्म्स के बैनर तले बनी फिल्म ‘जवानी जानेमन’ मनोरंजक और मानवीय भावनाओं से भरी है। निर्माता जैकी भगनानी, दीपशिखा देशमुख, सैफ अली खान, जय सेवकरमानी की फ़िल्म ‘जवानी जानेमन’ अन्य फिल्मों से हटकर है। यह फ़िल्म आज के समय के सभी वर्गों के दर्शकों के लिए है। खुलेदिल से फिल्म देखी जा सकती है। सूत्रों के मुताबिक फिल्म वितरक ने मोटी रकम देकर फिल्म ली है। सिनेमाघरों में दर्शको का रिस्पांस वितरक के उम्मीदों पर खरा उतरने वाला नहीं है। फिल्मकार तो फायदे में हैं लेकिन वितरक को आर्थिक हानि हो सकती है।

(वनअप रिलेशंस न्यूज डेस्क)

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