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विवादों में “छपाक” सिने दर्शक ले रहे हैं स्वाद

फिल्म समीक्षा

मुम्बई से शामी एम इरफान

निर्माता: दीपिका पादुकोण, फॉक्स स्टार स्टूडियोज, गोविंद सिंह संधू और मेघना गुलजार

निर्देशक:  मेघना गुलजार

संगीत : शंकर-एहसान -लॉय

कलाकार : दीपिका पादुकोण, विक्रांत मेस्सी, अंकित बिष्ट, मधुरजीत सरगी, वैभवी बउपाध्याय,

सामजिक मुद्दों की बात करती और महिलाओं की त्रासदी को दर्शाती फिल्म “छपाक” शुक्रवार को सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई है. सूत्रों से मिली खबर के मुताबिक मेघना गुलजार निर्देशित और दीपिका पादुकोण अभिनीत यह फिल्म मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने राज्य में टैक्स फ्री कर दिया है और खबर के मुताबिक ओपनिंग शो में उत्तर प्रदेश लखनऊ में सपा ने इसके सारे टिकट सिनेमाघरों में बुक करा दिए हैं. सारे देश की बात करें तो फिल्म को लेकर विवाद जारी है. कहानी एसिड अटैक विक्टिम सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल के जीवन पर आधारित है. मेघना गुलजार ने सुंदरता की परंपरागत धारणा पर प्रहार करते हुए कहानी को बहुत ही रियलिस्टिक रखा है. एसिड अटैक की त्रासदी को कहीं भी मेलोड्रामैटिक या सनसनीखेज नहीं होने दिया.
फिल्म की शुरुआत होती है दिल्ली में रेप के खिलाफ विशाल आंदोलन से. जिसमें आंदोलनकारी पुलिस के सामने जबरदस्त तरीके से डटे हुए हैं. पूरी मीडिया उस आंदोलन को कवर कर रही है. इस बीच एक व्यक्ति चैनल के कैमरे के सामने एसिड अटैक पीड़िता का फोटो बार-बार लाता है, लेकिन कैमरामैन उसे हटा देता है. कैमरामैन और रिपोर्टर दोनों उस पर नाराज होते हैं. इस बीच एक युवक अमोल आकर उस व्यक्ति को अपने साथ लेकर जाने लगता है और वह टीवी पत्रकार पर तंज करता है कि, रेप के सामने भला एसिड अटैक पीड़िता को कौन तरजीह देगा? यह बात पत्रकार को चुभ जाती है. वह मालती को ढूंढती है और शुरू होती है उसके ऊपर हुए एसिड अटैक की कहानी .कई सर्जरी से गुजर चुकी मालती (दीपिका पादुकोण) को जब पत्रकार ढूंढकर उसका इंटव्यू करती है, तब कहानी की दूसरी परतें खुलती हैं.एसिड अटैककर मोटरसाइकिल से आता है और उस पर तेजाब फेंक कर भाग जाता है. एक सरदार जी आते हैं उसकी मदद करते हैं. उसे अस्पताल पहुंचाया जाता है. शक की सुई मालती के बॉयफ्रेंड राजेश (अंकित बिष्ट) पर घूमती है. लेकिन बाद में मालती बताती है कि, एसिड अटैक करने वाला राजेश नहीं बल्कि उसका जानने वाला बब्बू उर्फ बशीर (विशाल दहिया) है. पुलिस धर पकड़ करती है और कहानी आगे बढ़ती है. मालती एसिड विक्टिम सर्वाइवर्स के लिए काम करनेवाले एनजीओ से जुड़ती है, जहां कई एसिड विक्टिम्स के साथ एनजीओ के कर्ता-धर्ता अमोल (विक्रांत मेसी) से मिलती है. फिल्म में बताया गया है कि, एसिड अटैक जिसपर होता है, उसकी जिंदगी किस तरह से चलती रहती है. पीड़िता कैसे तबाह हो जाती है. फिल्म में लक्ष्मी अग्रवाल (स्क्रीन पर मालती) के जीवन की सच्ची कहानी के अलावा एसिड को लेकर की गई पीआईएल और अमोल द्वारा स्थापित एनजीओ द्वारा पीड़ितों की मदद की कहानी बड़े ही बेहतरीन ढंग से कही गई है.  फिल्म बहुत ज्यादा ड्रैमेटिक ना बनाते हुए सीधे-सीधे मुद्दे की बात करती है. ऐसे पीड़ितों को लेकर सरकारों की उदासीनता पर भी सवाल उठाया जाता है
यह समाज की एक ऐसी फिल्म है, जो बताने में कामयाब हुई है कि किस तरह पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं की पहचान को छीन कर उसे किस तरह तबाह कर देते हैं. तेजाबी हमले के बाद कुरूप हुए चेहरे और समाज के तमाम ताने-उलाहनों और तिरस्कार के बीच एक चीज नहीं बदलती और वह होता है, परिवार का सपॉर्ट और वकील अर्चना (मधुरजीत सरघी) का मालती को इंसाफ दिलाने का जज्बा. अर्चना की प्रेरणा से ही वह एसिड को बैन किए जाने की याचिका दायर करती है.
अभिनय की बात करें तो, दीपिका पादुकोण ने शानदार एक्टिंग की है वह फिर से अपने फन का लोहा मनवाने में कामयाब रही हैं. एसिड विक्टिम सर्वाइवर के रूप में दीपका का प्रॉस्थेटिक मेकअप काबिले-तारीफ है. एक-एक सीन को दीपका ने बड़ी शिद्दत से जिया है. वह फिल्म की रूह है.उनके द्वारा निभाए गए कई दृश्य दिल निचोड़ कर रख देते हैं. एक दृश्य में अपनी इमिटेशन जूलरी और कपड़ों को बैग में रखते हुए कहती हैं, ‘न नाक है और न कान, ये झुमके कहां लटकाऊंगी मां?’ और दर्शक दीपिका पादुकोण के मुरीद बन जाते हैं. साथ ही पूर्व पत्रकार व एनजीओ के कार्यकर्ता अमोल के रूप में विक्रांत मेस्सी की भी एक्टिंग काफी दमदार है. उनका एक्सप्रेशन चाल- ढाल सब बढ़िया है. इनके अलावा बाकी कलाकारों में मालती की वकील अर्चना के रोल में मधुरजीत सरगी, मीनाक्षी के किरदार में वैभवी बउपाध्याय ने बहुत बढ़िया अभिनय किया है. अन्य सहयोगी कलाकारों ने अपनी भूमिकाओं के साथ पूरा न्याय किया है.
शंकर-एहसान -लॉय के संगीत में टाइटिल ट्रैक ‘छपाक’ दिल को छूनेवाला बन पड़ा है. गुलजार का लिखा गीत ‘छपाक से पहचान ले गया’ के अलावा फिल्म में एक और डायलॉग “उसने मेरी पहचान बदली है मन नहीं” पीड़िता का दर्द और उसकी बहादुरी दोनों दर्शाने में कामयाब है. मेघना गुलजार एक सुलझी हुई लेखिका व निर्देशिका है,. उन्होंने पूरी बात बहुत ही सही ढंग से कही है. उनका स्टोरी नरेशन बहुत ही बढ़िया है. वह दर्शकों को फिल्म से बांधे रखती हैं. फिल्म का फर्स्ट हाफ जरूर कुछ सुस्त है, मगर मध्यांतर के बाद घटनाक्रम अपनी रफ्तार पकड़ता है. फिल्म का स्क्रीनप्ले व डायलॉग पर मेघना गुलजार और उनके साथ अंकिता चौहान ने काफी मेहनत की है.

इस तरह की फिल्में कमर्शियल फिल्म नहीं होती. ऐसी फिल्में लोगों का मनोरंजन नहीं करती. फिर भी यह फिल्म देख सकते हैं. फिल्म प्रदर्शित होने से पूर्व विवादों में आ गई, लेकिन यह विवाद कदाचित सही नहीं है .भले ही एक खास समुदाय इस फिल्म को देखने ना जाए और जो समुदाय इस फिल्म को देखने नहीं जाएगा समझ लीजिए वह महिलाओं की कदर नहीं करता,वह समाज विरोधी ही होगा. फिल्म के लिए स्टार रेटिंग है 4 /5.

वन अप रिलेशन्स न्यूज डेस्क

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